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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास कोठारी घणमालजी आप मेड़ता कुँवर भोपतसिंहजी के साथ यूसुफ आई के साथ वाली लड़ाई में देहली बादशाह शाह अकबर की मदद के लिये गये थे । जब बादशाह ने कुँवर भोपतसिंहजी को पेशावर के ४ परगने और अजमेर के समीप मसूदे का दो लाख की आय का प्रसिद्ध ठिकाना जागीरी में दिया, उस समय घण माल मे बड़ी बुद्धिमत्ता पूर्वक इन परगनों का प्रबंध किया। आपके बाद, क्रमशः सकटदासजी, केशवदासजी, बनराजजी और नथमलजी भी मसूदे का काम करते रहे । कोठारी नथमलजी – आप बड़े वीर और व्यवहार कुशल सज्जन थे। जिस समय मसूदे के नाबालिग अधिकारी जैतसिंहजी को इनके काका शेरसिंहजी ने जोधपुर की मदद से निकाल दिया था, उस समय आपने अपनी बुद्धिमानी और चतुराई द्वारा बादशाह फसंख़ुशियर की शाही सेना की मदद प्राप्त कर कुँवर जैतसिंहजी को पुनः अपना राज्य दिलवाया। आपके सूरजमलजी और जयकरणजी नामक पुत्र हुए। कोठारी सूरजमलजी मरहों के साथ की गढ़बीटली की लड़ाई में वीरता से लड़कर मारे गये । कोठारी जयकरणजी के पुत्र बहादुरमलजी हुए । कोठारी बहादुरमलजी - आप वीर, समझदार तथा इतिहासज्ञ सज्जन थे। आपने जोधपुर का ईडर पर हक साबित करने के लिये एक ख्यात तय्यार की थी । सन १८१७ में कर्नल हॉल के साथ मेरों की बगावत शान्त करने में आपने भी सहयोग लिया था। इसी तरह रायपुर और मगेर के झगड़ों के समय आपको गवर्नमेंट ने पंच मुकर्रर किया था। आपके कार्यों से प्रसन्न होकर अजमेर मेरवाड़ा के अफसर कर्नल डिक्सन ने आपको इस्तमुरारी हकूक पर १ हजार बीघा जमीन मय तालाब और कुओं के इनायत की। संवत् १९१७ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके अमानसिंहजी, छतरसिंहजी, सावंतसिंहजी, बलवंतसिंहजी, सालमसिंहजी, छोटूलालजी और समरथसिंहजी नामक सात पुत्र हुए । कोठारी श्रमानसिंहजी —— कोठारी अमानसिंहजी ने मसूदे की कामदारी का काम बड़े सुव्यवस्थित ढंग से किया। आपका संवत् १९१६ में स्वर्गवास हुआ। आपके सुजानसिंहजी, सौभागसिंहजी, वल्लभसिंहजी तथा समीरसिंहजी नामक चार पुत्र हुए । कोठारी सुजान सिंहजी - आपका जन्म सं० १९१० में हुआ। आप बड़े योग्य तथा स्वतन्त्र विचारों के सज्जन थे । आप मसूदे से अजमेर आकर रहने लगे । उस समय आपकी साधारण स्थिति थी । लेकिन अपनी योग्यता और बुद्धिमत्ता द्वारा आपने अपनी स्थाई सम्पत्ति को खूब बढ़ाया। आपने भाय्यं २३२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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