SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भोसवाल जाति का इतिहास कई व्यक्ति आप के द्वारा जैन धर्म में दीक्षित किये गये। उस समय आपका प्रताप चारों भोर चमक रहा था । भाप उन महानुभावों में से थे जिन का नाम उस समय ही नहीं, आज भी प्रत्येक जैन समाज के व्यक्ति के मुंह पर हमेशा रहा करता है। आप के द्वारा भिन्न २ समय में भिन्न २ रूप से कई गौत्रों की स्थापना हुई। जिन का थोड़ा सा विवरण महाजन वंश मुक्तावली के अधार से नीचे दिया जा रहा है संवत् ।।६९ में धादेवा, पाटेवा, टोटियाँ और कोठारी संवत् १७५ में बोरड़, खीमसरा, और समदरिया संवत् १७६ में कठोतिया, संवत् 161 में रतनपुरा, कटारिया, ललवाणी वगैरह ५१ संवत् १८१ में डागा, माल, भाभू संवत् १८५ में सेठि, सेठिया, रंक, बोक, राका, बाँका, संवत् १८0 में सखेचा, मूंगलिया, संवत् १९२ में चोरदिया, साँवसुखा, गोलेछा, लूनियां वगैरह संवत् ११९७ में सोनी, पीतलिया, बोहित्थरा, ७. गौत्र संवत् १९८ में भायरिया लूनावत्, बापना इत्यादि संवत् ११९६ में भणसाली, चंडालिया संवत् १२०१ में भाबेड़ा, खटोल संवत् १२०२ में गडवाणी, भड़गतिया, पोकरण वगैरह लिखने का मतलब यह है कि आप के द्वारा ओसवाल जाति एवम् जैनधर्म का बहुत उत्थान हुआ। पही कारण है कि समाज में भाप दादाजी के नाम से पुकारे जाने लगे। वर्तमान में भारतवर्ष भर में जहाँ २ जैन वस्ती हैं वहाँ २ दादा वाड़ियाँ है जो प्रायः आप के ही स्मारक में बनी हुई है और वहाँ भाप के चरण स्थापित हैं। भाप का स्वर्गवास संवत् १२११ में हुआ। श्री जिनचन्द्रसरि श्री जिनचंद्रसूरि भी जैनधर्म के अन्दर बड़े प्रभावशाली आचार्य हुए है । ओसवाल जाति का विस्तार करने में भापने बहुत बड़ा भाग लिया है। भाप खरतरगच्छ के भाचाय थे । भापका जन्म संवत् ॥९० भाद्रपद शुक्ला को हुमा । आप के पिता का नाम साहरासलक और माता का नाम देहण. १२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy