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________________ मोसवाल जाति का अभ्युदय श्री जिनवल्लभसूरि श्री जिनघल्लभ सूरि राजा कर्ण के समय में एक गणि की तरह और उसके पश्चात् सिदराज के समय में एक ग्रंथकार और आचार्य की तरह प्रसिद्ध हुए। आपका स्थान खरतरगच्छ के भापार्यों में बहुत ऊंचा है। शुरू में ये चैत्यवास के उपासक जिनेश्वर नाम के मठाधिपति के शिष्य थे । उन्होंने इन को पाटन में श्री अभयदेवसूरि के पास शास्त्राध्ययन करने के लिए भेजा। वहाँ पर इन्होंने चैत्य वास के मत को छोड़कर शास्त्र रीति के अनुसार आचार को ग्रहण किया । इनके उपदेश से जो चैत्य बने वे विधि चैत्य के नाम से मशहूर हुए । इन चैत्यों में कोई शास्त्रविरुद्ध कार्य न हो इसके लिए आपने कई श्लोकों की रचना कर के वहाँ लगाई । यहाँ से आपने मेवाड़ में बिहार किया। उस समय मेवाड़ चैत्यवासी आचार्यों से भरा हुआ था। चित्तौड़ में आपने अपने उपदेश से कई लोगों को जैन धर्म में दीक्षित किया । यहाँ पर भी आपने दो विधिचैत्यों की प्रतिष्ठा की । इसके पश्चात् आप बागढ़ में गये। वहाँ जाकर मापने वहाँ के लोगों को प्रतिबोध दिया । वहाँ से चलकर धारा नगरी के राजा नरवा की सभा में आपने बहुत ख्याति प्राप्त की । नागौर में आपने नेमि जिनालय की प्रतिष्ठा की। संवत् ११५६ में आपने चोपड़ा, गणधर चौपड़ा, कुकड़चौपड़ा, बड़ेर साँड वगैरह गौत्रों की तथा संवत् १६० में गॉरिया, लखवानी, बरमेचा, हरकावत, मल्लावत, साह सोलंकी इत्यादि कई गौत्रों की स्थापना की । इसके पूर्व संवत् ११४२ में भाप कांकरिया गौत्र की स्थापना कर चुके थे । संवत् ११६४ में आपने सिंधी गौत्र की स्थापना की । आप का स्वर्ग वास संवत् ११६७ में हुआ। श्री जिनदत्तसूरि - श्री जिनदत्तसूरि खरतरगच्छ में सब से ज्यादा नॉमाकित भऔर प्रतिभासम्पम भाचार्य हुए । आप का जन्म संवत् ११३२ में हुआ। आपके पिता श्री का नाम वाधिगमन्त्री तथा माताजी का नाम वाहड़देवी था । आप का गौत्र हुँबड़ था और आप धन्धूक नगर के निवासी थे। भापका मुख्य नाम सोमचन्द्र था। संवत् ११४१ में आप ने जैन धर्म की दीक्षा ली । संवत् ११६९ में चित्तौड़ नगर में भाप को श्री देवभद्र माधाय द्वारा आचार्य पद प्राप्त हुभा । जिस समय आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये गये उस समय भान कर का सा जमाना नहीं था। वह चमत्कारवाद का युग था। चारों ओर चमत्कार की पूजा होती थी । भाचार्य श्री भी इस विद्या में पारङ्गत थे । अतएव कहना न होगा कि आपने अपने अपूर्व चमत्कारों की बजह से तत्कालीन जनता के हृदय पर अपनी गहरी धाक जमाली थी। भापके चमत्कारों से प्रभावित होकर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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