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________________ ओसवाल जाति का अभ्युदय देवी था। संवत् १२०३ की फाल्गुन वदी ९ को आपने दीक्षा ग्रहण की। भापके गुरु दादाजी श्रीजिनदत्त. मूरिजी थे। संवत् १२१ की बैशाख सुदी ६ को आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए । आपने संवत् १२१४ में अधारिया, १२१५ में छाजेड़, संवत् १२१६ में मिन्मी खजाँची, भूगड़ी, श्रीश्रीमाल, १२१७ में सालेचा, दूगड़, सुघड़, शेखाणी, कोठारी, आलावत, पालावत इत्यादि कई गौत्रों की स्थापना की । आप का स्वर्गवास संवत् १९२३ की भादवा बदी १४ को हो गया। श्री जिनकुशलसरि ___दादाजी जिनदत्तसूरिजी के पश्चात् श्री जिनकुशलसूरि जैन समाज के अन्दर बड़े प्रभाविक एवम् प्रतिभा सम्पन्न भाचार्य हुए । भापका जन्म संवत् १३३० में हुआ। आप छाजेड़ गौत्रीय मंत्री जिल्हागर के पुत्र थे । आपकी माताका नाम जयन्तश्री था। संवत् १३४७ में आपने दीक्षा ग्रहण की। इनके पश्चात् संवत् १३७७ में आपको आचार्य पद प्राप्त हुआ। आपने बावेल, संघवी, जड़िया वगैरह २१ शाखाओं की तथा डागा गोत्र की स्थापना की। आपने पाटन में साह तेजपाल से नन्दिमहोत्सव करवाया, जिसमें २४.० साधु साध्वी आपके साथ थे। संवत् १३८० में साह तेजपाल ने शंध्रुजय तीर्थ का संघ निकाला उसमें भी आप सम्मिलित हुए। आपने भीमपल्ली नामक नगर में भुवालकृत एक वीर चैत्य की, जेसलमेर नगर में धवलकृत चिन्तामणि पार्श्वनाथ की तथा जालोर नगर में श्री पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की । आपके संघ में १२०० साधु तथा १०५ साध्वियाँ थीं। आप भी अपने गुरु की सरह जैन समाज में दादाजी के नाम से प्रसिद्ध हैं। संवत् १३८९ को फाल्गुन वदी अमावस्या को देराउर नगर में आठ दिनके अनशन के साथ आप स्वर्गवासी हुए। श्री जिनभद्रसूरि श्री जिनभद्रसूरि खरतर गच्छ के अन्दर एक प्रभाविक, प्रतिष्ठावान, और प्रतिभाशाली आचार्य हुए । आपने जैम शासन को बहुत उरोजन प्रदान किया। आपके उपदेश से जैन श्रावकों ने गिर. मार, चित्रकूट ( चित्तौड़ ) मंडोवर आदि अनेक स्थानों में बड़े २ जिन मन्दिर बनवाये । अणहिलपुर पहन भादि स्थानों में आपने विशाल पुस्तक भंडारों की स्थापना की। माँडवगढ़, पालनपुर, तलपाटक आदि मगरों में अनेक जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा की । जैसलमेर के तत्कालीन राजा रावत श्री बैरसिंह और थंबक. दास सरीखे प्रतिष्ठित व्यक्ति आपके चरणों में गिरते थे । आपके उपदेश से साह शिवा आदि चार भाइयों ने संवत् १४९५ में जैसलमेर में एक भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया । संवत् १४९७ में आचार्य सूरिजी ने
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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