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________________ श्रोसवाल जाति का इतिहास राई थी। संवत् १०८० में इन्हें खरतर' का विरुद प्राप्त हुआ, सभी से इनका गच्छ खरतरगच्छ के नाम मशहूर हुआ । इन्होंने श्रीपत्ति ढड्डा, तिलौरा ढड्ढा और भणसाली नामक गौत्रों की स्थापना की, ऐसा महाजन वंश मुक्तावली से पाया जाता है । से श्री अभयदेवसूरि श्री अभयदेवसूरि श्री जिनेश्वरसूरिजी के शिष्य और श्री जिनचन्द्रसूरिजी के गुरु भाई थे । आपका जन्म संवत १०७२ में हुआ था । संवत् १०८८ में अर्थात् जब कि आप केवल १६ वर्ष के थे आपको आचार्य पद प्राप्त हुआ था । आपने जैनों के नव आगमों पर संस्कृत टीकाएँ रचीं इससे आप नवांग वृत्तिकार के नाम से प्रसिद्ध हुए । आप बड़े प्रतिभा शाली और विद्वान पुरुष थे । आपने कई उत्तमोत्तम ग्रन्थों की रचना की। आपका स्वर्गवास संवत ११३५ में कपड़वंज में हुआ । आपने खेतसी, पगारिया और मेड़तवाल नामक गौत्रों की स्थापना की । श्री मलधारी हेमचन्द्रसूरि श्री मलधारी हेमचन्द्रसूरि मलधारी श्री अभयदेवसूरि के शिष्य थे। इनके सम्बन्ध में इन्हीं की परम्परा के मलधारी राजशेखर संवत् १३८७ में लिखी हुई 'प्राकृत द्वयाश्रयवृति' में लिखते हैं कि इनका मूल नाम गृहस्थावस्था में प्रद्युम्न था । ये राजसचिव थे। श्री अभयदेवसूरि के उपदेश से इन्होंने अपनी चार स्त्रियों को छोड़कर दीक्षा ग्रहण करली। इनकी प्रतिभा के सम्बन्ध में इन्हीं के समकालीन शिष्‍ श्रीचन्द्रसूरि अपने मुनिसुप्रत चरित्र की प्रशारित में लिखते हैं कि इनके व्याख्यानकी मधुरता और उसके आकर्षण से गुणीजनों के हृदय में बड़ी श्रद्धा उत्पन्न होती थी। गुजरात का तत्कालीन राजा जयसिंहदेव या सिद्ध राज स्वयं अपने परिवार के साथ आपके दर्शन करने और आपका भाषण सुनने के लिये उपाश्रय में भाता था। इन्हीं आचार्य श्री के कहने से उसने अनेकों जैन मंदिरों पर कलश चढ़वाये | धंधुका सांचोर वगैरह तीर्थस्थानों में अन्य धर्मियों के द्वारा जिन शासन पर पहुँचाई जाने वाली पीड़ा को उसने दूर किया । पाटन से गये हुए गिरनार के विशाल संघ के साथ आप भी थे। उस समय मार्ग में सोरठ के राजा राव खंगार ने संघ के ऊपर उपद्रव किया और उसको रोक दिया। तब श्री हेमचन्द्रसूरि ने जाकर उसको प्रतिबोध दिया और संघ पर आयी हुई विपत्ति को दूर किया । आपने सांकला, सुराणा, सियाल, सांड, सालेचा, पूनमियां वगैरह २ गौत्रों की स्थापना की । आप पण्डित श्वेताम्बराचा भट्टारक के नाम से प्रसिद्ध थे। अंत में ७ दिन का अनशन करके आप स्वर्गवासी हुए ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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