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________________ मोख्वाज बाति का इतिहास मेहता सावलदासजी के पाचात् क्रमशः आसकरणजी, रामचन्द्रजी, दौलतरामजी, माणकचंदजी और घमंडसोजी हुए। मेहता घमंडसीजी-आप महाराजा सूरतसिंहजी के राजस्व-काल में हुए। आप बड़े कारखाने एवम् श्रीजी के निज के खर्च के बन्दोबस्त के काम पर नियुक्त किये गये। इस काव्यं को आपने बड़ी होशियारी और बुद्धिमानो के साथ किया । आपके दो पुत्र हुए जिनके नाम मेहता मूलचन्दजी और मेहता भवीरचन्दजी था। मेहता मूलचन्दजी-आप मेहता घमंडसीजी के बड़े पुत्र थे। अपने पिताजी के स्वर्गवासी हो जाने पर आप उनके रिक्त स्थान पर नियुक्त हुए। सम्बत् १८७० में आप चूरू के सरदार के साथ होने वाले युद्ध में महाराजा के साथ गये थे। इस युद्ध में आपने अपनी बहादुरी एवम् वीरत्व का खासा परिचय दिया था। यहीं आप बरछी के द्वारा घायल हुए थे। आपके कार्यों से प्रसन्न होकर तत्कालीन महाराजा साहब ने आपको बड़े कारखाने का काम भी सौंपा। इसी समय नौरङ्गदेसर नामक एक गाँव भी आपके गुजरान के लिये बक्षा गया । आपके स्वर्गवासी हो जाने पर तत्कालीन महाराजा रतनसिंहजी सम्वत् १९०५ में आपके मकान पर पधारे और मातम पुरसी की। आपके चार पुत्र थे, जिनके नाम क्रमशः मेहता भमो. एकचन्दजी, मेहता हिन्दूमळजी, मेहता छोगमलजी और मेहता अनारसिंहजी थे। मेहता अबीरचन्दजी-आप मेहता घमंडसोजी के दूसरे पुत्र थे। आप राज्य में होने वाली डकैतियों की देखभाल के काम पर नियुक्त हुए थे। यह काम उस समय बहुत ज्यादा खतरनाक था । आजकल की भांति व्यवस्था न होने पर भी आपने यह कार्य बहुत बुद्धिमानी एवम् होशियारी तथा वीरता से सम्पादित किया । इस काम को करते समय आपको कई बार डाकुओं का सामना करना पड़ा और उनसे युद्ध करना पड़े। इन युद्धों में आपको कई घाव भी लगे। कुछ समय के पश्चात् महाराजा ने आपको इस काम से हटाकर रियासत बीकानेर की भोर से देहली में वकील के स्थान पर भेजे। इस उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य को भी आपने बड़ी होशियारी और बुद्धिमानी से संचालित किया । आपके कार्यों से महाराणा एवम् रेसिडेण्ट दोनों ही सजन बड़े प्रसन्न रहे। संवत् १८८४ में देहली ही में डाकुओं के साथ होनेवाली लड़ाइयों में जो घाव लगे थे, उनके खुल जाने से आपका स्वर्गवास हो गया। - मेहता हिन्दूमलजी-आप मेहता मूलचन्द्रजी के द्वितीय पुत्र थे। इस परिवार में माप बड़े बुद्धिमान प्रतिभा सम्पन्न और मेधावी व्यक्ति हुए। भाप सम्वत् १८८४ में रियासत की ओर से देहली वकालत पर भेजे गये। इसके पश्चात् आपके बुद्धिमत्ता पूर्ण कार्यों से प्रसन्न हो कर महाराजा साहब ने आपको अपना दीवान बनाया। धीरे २ आपको सिक्केदारी की मुहर भी प्रदान करदी गई पाने राज्य का सारा
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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