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________________ संवत् १५१५ में जब कि राव जोधाजी ने अपने नाम से जोधपुर शहर बसाया था, उस समय भी इस खानदान वाले सज्जनों ने रियासत में दीवानगी जैसी ऊंची २ जगहों पर काम कर अपनी कागुजारी का परिचय दिया था। इसके पश्चात् एक समय का प्रसंग है कि किसी कारणवश राव जोधाजी के बड़े राजकुमार बीकाजी अपने उत्तराधिकार के सारे स्वत्वों को छोड़ कर कतिपय स्नेही जनों को साथ ले, जोधपुर को छोड़कर एक नवीन राज्य की स्थापना करने के उद्देश से चल पड़े। इन स्नेही व्यक्तियों में कई लोगों के साथ इस परिवार के लाला लाखणसी ( लालसीजी, लालोजी) भी थे । लाखनसीजी के साथ आपके दो भाई लोणाजी और जैतसीजी भी साथ आये थे, जिनका परिवार इस समय क्रमशः फलौदी और मारवाड़ के अन्य स्थानों में निवास कर रहा है। वेदलाला लाखनसी—आप दीवान खींवसीजी की पांचवीं पुश्त में हुए। आपने राव बीकाजी को नवीन राज्य स्थापित करने में जो बहुमूल्य मदद पहुँचाई उसका जिक्र बीकानेर के इतिहास में भलीभांति किया गया है। जिस समय बीकानेर बसाया गया उस समय भी आपने इसके बसाने में पूरी २ कोशिश की थी। प्रथम २७ मोहल्लों में से १४ मोहल्ले आपके द्वारा बसाए गये । शेष बच्छराजजी मेहता के द्वारा बसे । उस समय बीकानेर राज्य में आप या मेहता बच्छराजजी दोनों ही व्यक्ति ऐसे थे जो राजा और प्रजा दोनों में बड़े सम्मानित समझे जाते थे। आप दोनों ही के द्वारा अपने २ बसाए ए मुहल्लों में कई नियम प्रचारित किये गये थे, जिनमें से कुछ आज भी सुचारुरूप से चल रहे हैं। मेहता लाखनसीजी के श्रीवन्तजी और श्रीवन्तजी के अमराजी एवम् सूरजमलजी नामक दो पुत्र हुए। अमराजी के पुत्र जीवनदासजी ने बीकानेर स्टेट में जीवनदेसर नामक एक गाँव आबाद किया । जीवनदासजी के पुत्र का नाम मेहता ठाकुरसीजी था । मेहता ठाकुरसाजी - आप राजा राबसिंहजी के राजस्वका में रियासत बीकानेर के दीवान रहे । आपके समय में बहुत सी लड़ाइयाँ हुई। जिस समय राजा रायसिंहजी ने दक्षिण विजय किया उस समय मेहता ठाकुरसीजी उनके साथ थे। इस युद्ध में विजय प्राप्त करने के कारण बादशाह अकबर राजा रायसिंहजी से बड़े प्रसन्न हुए । उन्होंने इन्हें ५२ परगने का एक पट्टी इनायत किया । इसी समय आपने मेहताजी की चाकरी पर खाविदी फरमा कर एक तरधार और भटनेर नामक एक गाँव जागीर स्वरूप प्रदान किया, जिसे आजकल हनुमानगढ़ कहते हैं। साथ ही इस परगने का काम भी आपके सुपुर्द हुआ। आपके सांवलदासजी एवम् राजसीजी नामक दो पुत्र हुए। आप लोगों ने भी राज्य में ऊँचे पदों पर कार्य्यं किया । आपके समय में ८, ९ गाँव की जागीर आपके अधिकार में थी । १६७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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