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________________ पोल्यान जाति का इतिहास बड़गांव पर फौजी चदाई की और वहाँ अपवा अधिकार किया। इसके लिए महाराजा मानसिंहजी में भापको जो पन दिया था उसमें लिखा था-"xxxश्री जीरा माया प्रताप स बड़ागांव कायम हा सो खुशी हुई निवाजस होसी। अन थाणो बढ़ागांव में मजबूत राख कूच आगे करजो। उठी रो बन्दोबस्त वसली आश्री रीत करजो । समाचार इन्द्रराज सूरजमलरा कागजसु जाजो सम्बत १८६५ राजेठ सुदी १४।' जिस समय मानमब्जी जैतारण हाकिम थे उस समय सारे मारवाद में भशान्ति के बादल घिर रहे थे। चारों भोर की भापत्तियां उसपर भा.रही थीं। उस समय में हाकिमी का काम भी भाज जैसा सरल नहीं था। उन्हें राज्य-रक्षा के लिए फौजी नाकेबन्दियां करनी पड़ती थीं। सम्बत् १८६४ की भादवा सुदी ३ को जैपुरवाली फौज की नाकाबन्दी करने के लिए सिंघवी इन्द्रराजजी ने इनें लिखा था:"xxx घांटारा जाबता कराय दीजो सो फौज चढ़ सके नहीं। फिर देवगढ़ तथा सोलाकया सु ने मेरासुप को बन्दोबस्त कर घाटे नहीं चढ़े सो करजो।" इसी तरह भादवा सुदी ३ को भापके नाम जोधपुर से जो रुका आया उसमें लिखा था-"अयपुरवाला घाटे हुए उदयपुर जाय सके नहीं। इसो घाटारो बन्दोबस्त करणो।" - भण्डारी मानमलजी का सम्बत् १४४ की पौर सुदी १२ को जैतारण में देशान्त हुभा आपकी द्वितीय धर्मपत्नी आपके साथ सती हुई। भापके पुत्र प्रतापमलजी मेड़ता और दौलतपुरा के हाकिम रहे। मापने जयपुरी फौज पर गिगोली की घाटी पर हमला किया था। सम्वत् १८७६ की पौष सुदी ३ को हरिद्वार में आपका स्वर्गवास हुभा। आपके साथ भी आपकी धर्मपत्नी सती हुई जिनकी छत्री बनी हुई है। इनके पश्चात् भण्डारी मानमलजी के कोई सन्तान नहीं रही। अतएव उन्होंने अपने तीसरे भाई बख्तावर मरूजी के मामले पुत्र कस्तूरमरूजी को दत्तक किया। कस्तूरमकजी के पुत्र भण्डारी रखमरूजी ने दौलतपुरे में हुक्मत की। भापके पुत्र भण्डाती देवराजजी इस समय उदयपुर में विद्यमान है और भाप देवस्थान महकमें में काम करते हैं। भापके पुत्र उदयराजजी और तेजराजजी हैं, जिनमें उदयराजजी उदयपुर राज्य में पुलिस सब इन्सपेक्टर है। भण्डारी मानमलजी के छोटे भाई जीतमलजी थे। इनके पश्चात् क्रमशः सुलतानमन्जी, अमृतमलजी, धनरूपमलजी और रंगराजजी हुए। इस समय इनके परिवार में कोई नहीं है। भण्डारी मानमलजी के सबसे छोटे भाई बस्तावरमलजी के बदनमलजी, कस्तूरमलजी, चंदनमलजी मामक तीन पुत्र हुए। भण्डारी बदनमलजी कोलिया, जैतारण तथा देसूरी के हाकिम रहे। भापको दरबार से सिरोपाव मिला था। भण्डारी चन्दनमलजी सम्वत् १८९०-९१ में नागौर तया मेड़ते के हाकिम रहे। सम्वत् १९०१ की भावण सुदी १४ को हनका शरीरान्त हुआ। इसके साथ इनकी धर्मपत्नी सती हुई
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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