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________________ भंडारी जिनकी तिमारी जैतारण में बनी है। इनके पुत्र राजमला हुए। आप पर्वतसर और मारौठ के हाकिम हे। सम्बत् १९२८ में इनका स्वर्गवास हुआ। आपके दानमकजी, जीवनमलजी तथा सांवतरामजी नामक तीन पुत्र हुए। इस समय दानमलजी के पुत्र पृथ्वीराजजी और सुकनराजजी मौजूद हैं। भारी सांवतरामजी के अभयराजजी और बच्छाजजी नामक दो पुत्र विवमान , इनमें अभवराजजी जीवनमलजो के नामपर दत्तक गये हैं। बच्छराजजी जैतारण में वकालत और अभयराजजी जीनिंग फैक्टरी का काम करते हैं। रासाजी का परिवार __ दीपानी के सबसे छोटे पुत्र का नाम रासाजी था। आप बड़े वीर थे। आपने छोटी मोटी कई पदालों में हिस्सा लिया था। सम्बत १७३९ के भादवा बदी ९ को गुजरात का मुसलमान शासक सैम्बर मुहम्मद राणपुर में बढ़ कर भाया । इस समय जोधपुर नरेश महाराजा अजितसिंहनी सिरोही राज्य के कद्री नामक गाँव में थे। महाराजा की ओर से उनके मुकाबले के लिये जो सेना गई थी उस के प्रधान सेनापति भण्डारी दीपाजी के चौथे पुत्र भण्ारी रामचंद्रजी थे। रायचंद्रजी के बड़े भाई रासाजी भी फौज के एक अफसर थे। आप दोनों भाई बड़ी वीरता से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। भण्डारी खींवसीजी जिन महान् पुरुषों ने मारवाड़ के इतिहास को उज्जवल किया है उनमें भण्डारी खींवसीजी का भासन बहुत ऊँचा है। जिस समय इस महान् राजनीतिज्ञ का उदय हो रहा था, वह समय भारत के इतिहास में भयंकर अशान्ति का था। सम्राट औरंगजेब मर चुका था और उसके वंशओं के निर्बल हाथ भारत की शासन नीति को सञ्चालित करने में असमर्थ सिब हो रहे थे। "जिसकी लाठी उसकी मैंस" की कहावत चरितार्थ हो रही थी और चारों ओर नयी नयी शक्तियों का उदय हो रहा था । जबर्दस्त बादमी अपने मजबूत हाथों से बादशाहों को बनाते और बिगाड़ते थे। ऐसे नाजुक समय में तत्कालीन भारतीय साम्राज्य नीति को डगमगाने वाले महाराजा अजितसिंहजी की प्रधानगी के पद को भण्डारी खींवसीजी सोमायमान कर रहे थे। भण्डारी खींवसीजी का उदय क्रमशः हुआ। पहले सम्बत् १७६५ में वे हाकिम के साधारण पद पर नियुक्त हुए। इसके बाद सम्बत 11 में आप दीवान के उच्च पद पर प्रतिष्ठित किये गये तथा
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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