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________________ दीपावत भण्डारी मराज भण्डारी के राजसीजी, जसाजी, सिहोजी, खरतोजी, तिलोजी, निम्बोजी और नाथोजी नामक सात पुत्र थे। इनमें भण्डारी नराजी के दूसरे पुत्र जसाजी के जयमलजी नामक पुत्र हुए । भण्डारी जयमलजी के पुत्र राजसिंहजी और पौत्र दीपाजी हुए। इन्हीं दीपाजी की सन्तान दीपावत भण्डारी के नाम से मशहूर हुई । भण्डारी दीपाजी के भोजराजनी, खेतसीजी, रामचन्दजी, रायचन्दजी तथा रासाजी नामक पाँच पुत्र हुए । दीपाजी के सम्बन्ध में बहुत खोज करने पर भी हमें विशेष वृतान्त ज्ञात नहीं हुआ । उनका इतिहास प्रायः अन्धकारक है। राज्य की ओर से अरठिया नामक गाँव में भण्डारी दीपाजी को जोधपुर दरबार की ओर से पाँच खेत जागीर में मिले थे, वे ही खेत पीछे जाकर उनके पौत्र भोजराजजी को सम्वत् १७७० के प्रथम अपाद खुदी १४ को महाराजा अजितसिंहजी ने बक्षे। इसके लिए जो परवाना दिया गया था उसमें लिखा था --- x x x " तथा गांव अरठिया बड़ा में भण्डारी दीपाजी रा खेत हे सो भण्डारी मेघराज ( मोजराजोत ) ने हुजुर सु इनायत हुआ छे सो ए सदाबन्द पाया जावसी ।"* उक्त लेख से यह भवन पाया जाता है कि भण्डारी दीपाजी ने जोधपुर राज्य की कुछ न कुछ सेवाएँ अवश्य की होंगी और उनके लिए उन्हें कुछ जागीरी मिली थी । अब हम दीपाजी के बेटे पोतों का परिचय देते हैं । भण्डारी भोजराजजी आप दीपाजी के सबसे बड़े पुत्र थे । आपके पुत्र मेघराजजी हुए । दीपाजी के खानदान में पाटवी होने से महाराजा अजितसिंहजी ने दीपाजी की जागीरी के खेत इन्हें इनायत किये । भण्डारी मेघराजजी भण्डारी रघुनाथसिंहजी की दीवानगी के समय सम्वत् १७७६ में जैतारण के हाकिम रहे । भण्डारी मेघराजजी के आईदानजी, गोवर्द्धनदासजी, कन्हीरामजी तथा देवीचन्दजी नामक चार पुत्र हुए। इनमें गोवर्द्धनदासजी विशेष प्रतापी हुए । जोधपुर की ख्यात में आपके वीरोचित कार्यों के प्रशंसनीय उल्लेख हैं । आप भण्डारी रघुनाथसिंहजी के समकालीन थे, यह बात भण्डारी रघुनाथजी के द्वारा आपके नामपर भेजे हुए एक पत्र से प्रकट होती है । भण्डारी गोवर्द्धनदासजी के दुर्गदासजी, मोहकमदासजी तथा मुकुन्ददासजी नामक तीन पुत्र हुए। इन बन्धुओं में दुर्गादास - ली के पुत्र भगवानदासजी तथा गुलाबचन्दजी थे । भण्डारी गुलाबचन्दजी का परिवार इस समय उज्जैन में रहता है । भण्डारी भगवानदासजी के मानमलजी, जीतमलजी तथा बख्तावरमलजी नामक तीन पुत्र हुए। इनमें भण्डारी मानमलजी सम्वत् १८५० में जैतारण के हाकिम रहे। आपने सम्वत् १८६५ में बोकड़िया * यह मूल परवाना जैतारण में भण्डारी अभयराजजी के पास है । इस परिवार में इस वक्त भण्डारी बालचन्दनी, सुकनचन्दजी भादि हैं। ५३ मेडारी १२१
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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