SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास व्यापारिक दूरदर्शिता की ही तरह आपकी धार्मिक और परोपकारक वृत्ति भी बहुत बढ़ी हुई है। आपने हैदराबाद तथा सोमत की दादाबाड़ियों में बहुतसी बातों की सुविधाएँ करवाई। आपकी ओर से बहुतसे विद्यार्थियों को गुप्त रूप से छात्रवृत्ति दी जाती है। आप शिवपुरी बोर्डिङ्ग हाउस को भी गुप्त रूप से बहुत सहायता प्रदान करते रहते हैं। हैदराबाद के मारवाड़ी सार्वजनिक जीवन में आप बहुत बड़ी दिलचस्पी रखते हैं। आपकी पुरानी फर्म पर "मेसर्स पूनमचन्द गणेशमल" के नाम से गल्ले का व्यापार होता है। • आपकी हैदराबाद में बहुत बड़ी २ इमारतें हैं जिनसे काफी आमदनी होती है । आपका हैदराबाद का पता मेसर्स जी० रघुनाथमल बैंकर्स रेसिडेन्सी बाजार हैदराबाद है । सिंघवी कस्तूरमलजी का परिवार, मेड़ता यह परिवार भी राममकोत सिंघवियों की एक शाखा से निकला हुआ है । यद्यपि इस परिवार बों का सिलसिलेवार इतिहास उपलब्ध नहीं होता है फिर भी पुराने कागज-पत्रों से यह बात मालूम होती है कि पहले इस परिवार के लोग राज्य और समाज में बड़े प्रतिष्ठित माने जाते थे । कुछ कागजातों से ऐसा भी मालूम होता है कि किसी समय में इस परिवार वालों के लिये मारवाड़ - राज्य से अधकरी महसूल की माफी के आर्डर मिले थे। इस परिवार में बहादरमलजी, नाहरमलजी, कल्याणमलजी और कस्तूरमलजी हुए। श्री कस्तूरमलजी छबड़े (टोंक) में लोड़ों के यहाँ हेड़ मुनीमी का काम करते रहे । आप मेड़ता और छबड़ा में बड़ी प्रतिष्ठा की निगाह से देखे जाते थे । आपके कोई पुत्र न होने से आपके यहाँ कालू से सिंघवी गोवर्द्धनमलजी के पुत्र सिंघवी मिश्रीमलजी दत्तक लिये गये। वर्तमान में आपही इस परिवार में बड़े व्यक्ति हैं। माप मिक्सर, सजन और योग्य पुरुष । आपके श्री आनन्दमलजी और कन्हैयाकाजी नामक दो पुत्र हुए थे, मगर खेद है कि आप दोनों का कम उम्र में ही स्वर्गवास होगया । शिवराजजी सिंघवी कोलार गोल्डफील्ड इस परिवार के मालिकों का मूलनिवास स्थान अनन्तपुर काल ( मारवाड़ ) है । आप ओसवाल समाज के सिंघवी गौत्रीव जैन श्वेताम्बर समाज के मन्दिर आम्नाय को मानने वाले सृजन हैं। इस परिवार में श्री बुधमलजी हुए जिनके चार पुत्र हुए। इनमें से सबसे छोटे पुत्र अनोपचन्दजी के दो पुत्र हुए जिनके नाम श्री गम्भीरमलजी तथा श्री सुखराजजी था । श्री सुखराजजी सिंघवी के श्री सिवराजजी नामक पुत्र हुए।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy