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________________ श्री शिवराजजी का जन्म संवत् १९१० का है। सबसे पहिले माप कालू से संवत् १९५९ में बंगलोर आये और वहाँ आकर आपने अपनी एक फर्म स्थापित की। इसके दो वर्ष बाद कोलार गोल फील्ड में आपने अपनी बैंकिंग व लेन देन की एक फर्म स्थापित की जो इस समय तक बड़ी सफलता के साथ चल रही है। आपने अपने भतीजे समरयमलजी सिंघवी के पुत्र अमोलकचन्दजी को अपने नाम पर दसक लिया है। श्री अमोलकचन्दजी का जन्म संवत् १९७० का है। बाप भी इस समय फर्म के व्यवसाय में सहयोग देते हैं। श्री शिवराजजी बने सजन पुरुष है। आपने अपने व्यापार को अपने ही हाथों से बदाया। भाप धार्मिक और परोपकारी कामों में बहुत सहायता देते रहते हैं। सेठ सुखराजजी जेठमलजी सिंघवी (रायमलोत), दारवा (वरार) सिपी खुशालचन्दजी के पुत्र ताराचन्दजी जोधपुर स्टेट में सम्धि करते थे। आपको जागीर में गाँव और जमीन मिली थी। भाप जोधपुर से पीपादबले भाये। इनके पुत्र अमीचन्दजी तथा प्रेमचन्दजी और अमीचन्दजी के पुत्र कस्तूरचन्दजी, पीरबाजी, मखानीसंतावरमलजी हुए थे। सिंघवी पीरचन्दजी के पुत्र सुखराजजी और जुहारमलजी हुए और वस्तावरमलजी के कालचंदजी, हीरालालजी और चंपालालजी हुए। इन बंधुओं में सिंघवी छहारमलजी संवत् १८९०-९५में पीपाद से व्यापार के निमित्त दारवा (वरार ) गये, और आपने वहाँ अपना कारोबार स्थापित किया । सिंघवी जुहारमलजी के नाम पर चम्पालालजी, एवं सुखराजजी के नाम पर जेठमाणी (हीरामलजी के पुत्र) पीपाड़ से दारवा दत्तक आये। सिंघवी हीरालालजी, सिंघवी हिन्दूमलजी के नाम पर सारथल (सामावाद स्टेट) में दत्तक गये थे। हिन्दूमलजी और हीरालालजी सारथल ठिकाने के कामदार रहे । होराबाजी का शरीरान्त १९४० में हुआ। इनके पुत्र जेठमलजी दारवा में दत्तक गये। इस समय जेठमलजी के यहाँ कृषि तथा मापार कार्य होता हैं। आपके पुत्र दुलीचन्दजी तथा सुगनचन्दजी है। - इसी तरह इस परिवार में पेमचन्दजी के पुत्र गुलाबचन्दजी इन्द्रराजजी तथा अभयराजजी हुए गुलाबचन्दजी के पुत्र केसरीमलजी थे तथा केसरीचन्दजी के फूलचन्दजी तथा मुकुन्दचन्दजी नामक पुत्र हुए। इनमें मुकुन्दचन्दजी विद्यमान है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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