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________________ जब महाराणा जवानसिंहजी गद्दी पर विराजे तो भाप भी मेहताजी पर बहुत प्रसन्न रहे। इसी समय भाप जहाजपुर में हाकिम बना कर भेजे गये। इसके साह पश्चात् आप वापस उदयपुर बुलवा लिये गए एवम् न्याय के महकमें का काम आपके सिपुर्द किया गया। इसके बाद भाप डोली के ( माफ़ी के) काम पर नियुक्त हुए । इसी समय आपको सिरोड़ी नामक गांव जागीर में बक्षा गया । इसके पश्चात आप वापस महकमा न्याय में नियुक्त हुए। आपको दरबार में बैठक और जीकारा आदि बझे हुए थे। आपका स्वर्गवास संवत् १९०१ में हो गया। आपके तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः रघुनाथसिंहजी, दौलतसिंहजी और मोतीसिंहजी थे। इनमें से मोतीसिंहजी मेहता श्यामसिंहजी के पुत्र रामसिंहजी के नाम पर दत्तक चले गये । मेहता रघुनाथसिंहजी पर महाराणा स्वरूपसिंहजी की बड़ी कृपा रही। आपकी सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराणा साहिब ने आपको गांव प्रदान किया। आप जहाजपुर के पांच परगना-मगरा, खेरवाड़ा आदि जिलों में हाकिम रहे। आपने महाराणा शंभुसिंहजी के समय में अहलियान दरवार (मिनिस्टरशिप) का काम किया। संवत् १९२५ के चैत्र मास में आपने महाराणा साहब की पधरावनी की। इस अव. सर पर महाराणा साहब ने प्रसन्न होकर आपको पैरों में पहनने के लिए सोने की कदा जोड़ी प्रदान कर. सम्मानित किया। दरबार मे आपके पुत्र माधोसिंहजी को कंठी तथा भापके छोटे भाई दौलतसिंहजी और मोतीसिंहजी तथा भतीजे अर्जुनसिंहजी को कंठी और पौंचे बक्षकर सम्मानित किया । मेहता रघुनाथसिंहजी ने सरहद्दी जिलों में रहकर सरहद के झगड़ों का निपटारा किया, जिलों की तहसील की आपनें वृद्धि की और हर तरह दरवार को प्रसन्न रखा । महाराणा साहब ने भी प्रसन्न होकर समय २ पर कई पट्टे, परवाने, खास रुक्के, जीकरा, भादि बक्ष कर आपका सम्मान बढ़ाया। आपका स्वर्गवास संवत् १९२८ में हो गया। आपके नाम पर बावनी की गई थी उसमें महाराणा साहब ने १५००) प्रदान किये थे। ___ मेहता माधोसिंहजी भी अपने पिताजी की ही भांति मगरा, खेरवाड़ा, कुम्हलगद, खमनोर, सायरा आदि स्थानों पर हाकिम रहे। संवत् १९३१ में आप फौजबक्षी नियुक्त हुए। आपके कामों से प्रसन्न होकर दोनों ही महाराणाओं ने आपको जीकारा, बैठक, मांझा, तथा पैरों में सोना बक्षा । इसी समय . आपको पालकाखेड़ा नामक ग्राम जागीर स्वरूप मिला। जिस प्रकार उदयपुर के महाराणा साहब की आप पर बहुत कृपा रही, उसी प्रकार किशनगढ़ नरेश श्री पृथ्वीसिंहजी और शार्दूलसिंहजी की भी आप पर बड़ी कृपा रही । आप लोग भी आप की हवेली पर पधारे थे । आपका स्वर्गवास संवत् १९४६ में हो गया। भापके कोई पुत्र न होने से किशनगद से मेहता पृथ्वीसिंहजी के पौत्र मेहता बलवन्तसिंहजी को आपने इत्तक किया।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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