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________________ ओसवाल जाति का इतिहास मेहता बलवन्तसिंहजी पर महाराणा फतेसिंहजी की बड़ी कृपा रही। आपके पिताजी का स्वर्गवास हो जाने पर आपको पुश्तैनी फौजबक्षीगिरी का काम मिला । आपको भी बैठक और जीकारा बक्षा हुआ था। आपका स्वर्गवास बहुत शीघ्र ही हो गया। आपके एकमात्र पुत्र लछमनसिंहजो हैं। मेहता लछमनसिंहजी उस समय नाबालिग थे जब कि आपके पिताजी का स्वर्गवास हुभा था। अतएव आपकी पुश्तैनी बक्षीगिरी का काम आपके नामसे मेहता दौलतसिंहजी देखते थे। बालिग होने पर संवत् १९६३ में आपको रंग भवन की खिदमत दी गई। संवत् १९७२ में आपको बक्षी-गिरी फिर से दी गई। संवत् १९७९ में आप ट्रेझररी आफ़िसर नियुक्त हुए। महाराणा भोपालसिंहजी की भी आप पर बड़ी कृपा है। दरबार जागीर के अलावा आपके लिए खास तौर पर तनख्वाह भी मुकर्रर फरमाई तथा नाव की बैठक भी बक्षी। आपके केसरीसिंहजी नामक एक पुत्र हैं। कुँवर केसरीसिंहजी की पढ़ाई एल. एल. बी., तक हुई। आपको वर्तमान महाराणा साहब ने स्वरूपसाही रुपयों तथा पाटों को गलवाकर उनके स्थान पर नये चित्तौड़ी रुपये ढलवाने के लिए कलकत्ता मिंट में भेजा । सन् १९३२ में आप वहाँ से पौने दो करोड़ रुपये ढलवाकर उदयपुर लाये। इस काम को आपने बड़ी होशियारी से किया। इससे प्रसन्न होकर महाराणा साहब ने आपको ७५०) रुपये इनाम स्वरूप प्रदान किये तथा आपके लिये स्थायी वेतन का भी प्रबन्ध कर दिया। आपके खुमानसिंहजी मामक एक पुत्र हैं। . मेहता श्यामसिंहजी के पुत्र रामसिंहजी के कोई पुत्र न होने से मेहता उम्मेदसिंहजी के तीसरे पुत्र कुँवर मोतीसिंहजी दत्तक लिये गये। आप बुद्धिमान और होशियार व्यक्ति थे। आप संवत् १९२० में फौजी के सेनापति रहे। आपने अपने समय में कई कार्य किये। इसके अतिरिक्त आपने हुरड़ा जिले में अपने नाम से मोतीपुरा नामक एक ग्राम बसाया। पहाड़ी जिले में, नवा शहर जिसे माजकल देवरिया भी कहते हैं, आप ही ने आवाद किया। आप सहाड़ी, हुरडा, मांडलगढ़ इत्यादि जिलों में हाकिम रहे। आपके कामों से प्रसन्न होकर तत्कालीन महाराणा शम्भुसिंहजी ने बोरड़ी का खेड़ा उर्फ मोतीपुरो नामक ग्राम आपको जागीर में बक्षा। आपको दरबार में बैठक का सम्मान भी प्राप्त था। भापका स्वर्गवास हो गया। आपके दो पुत्र हुए, जिनके नाम मेहता सोहनसिंहजी और मोहनसिंहजी हैं। सोहनसिंहजी किशनगढ़ में रामसिंहजी मेहता के यहाँ दत्तक गये। मेहता मोहनसिंहजी अपने जीवन में बड़े उद्योगी व्यक्ति रहे। आपने कई स्थानों में काम किया। आप हैदराबाद, जोधपुर, भावनगर, अलवर, इन्दौर आदि कई स्थानों पर काम करते रहे।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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