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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास एक फर्म स्थापित की तथा इसे बहुत उन्नति पर पहुँचाया । साथ ही भैरोंदानजी वाली फर्म पर जब आप उसमें मुनीमत का काम करते थे सारी उन्नति आप ही के द्वारा हुई । आपका स्वर्गवास संवत् १९८३ में हो गया । आपके तीन पुत्र हुए। जिनके नाम क्रमशः वा जसकरनजी, जेठमलजी और बुधमलजी हैं । आप तीनों ही भाई समझदार एवम् सज्जन व्यक्ति हैं । आप लोगों का व्यापार सामलात में 'कलकत्ता में १९ सेनागोग स्ट्रीट में जूट तथा आढ़त का होता है। तार का पता "Free holder" है । t सेठ प्रेमचंदजी भी पहले अपने भाई के साथ व्यापार करते रहे मगर आपके स्वर्गवास होजाने पर आपके पुत्र फर्म से अलग हो गये एवम् अपना स्वतंत्र व्यापार करने लगे । आपके पुत्रों का नाम सेठ भैरोंदानजी एवम् सेठ हीरालालजी हैं । आप भी मिनलसार व्यक्ति हैं। सेठ भैरोंदानजी के गुलाबचन्दजी झूमरमलजी, विरदीचन्दजी और कन्हैयालालजी नामक चार पुत्र हैं । आप लोगों का व्यापार बिहारीगंज (भागलपुर) बरेड़ा ( पूर्णियाँ ) में जूट का होता है । यह परिवार जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय का मानने वाला है । श्री नथमलजी बोथरा इन्दौर श्रीयुत नथमलजी का संवत् १९४२ में जन्म हुआ। आप इन्दौर के सुप्रसिद्ध स्व० कोठारी गुलाबचंदजी के भानेज हैं। उक्त कोठारीजी ने ही बाल्यावस्था से आपका लालन पालन किया और उन्होंने स्थावर, जङ्गम जायदाद का आपको स्वामी बनाया । श्रीयुत गुलाबचंदजी कोठारी का आप पर बड़ा प्रेम था और आप ही ने आपको हिन्दी, मराठी और अंग्रेजी की शिक्षा दिलवाई। उक्त कोठारी साहब उस समय इन्दौर राज्य के खजांची थे । आपने अपने भाणेज श्री बोथराजी को अपने पास रख कर उन्हें आफीस के काम में होशियार कर दिया । कार्य्य का अनुभव प्राप्त करने के कुछ वर्ष बाद श्रीयुत बोथराजी इन्दौर राज्य के डेप्यूटी खजांची नियुक्त हुए । इस कार्य को आपने बड़े ही उत्तमता के साथ किया जिसकी प्रशंसा उच्च अफसरों ने की। कई वर्ष तक इस पद पर काम करने के बाद आप इंदौर राज्य के डेप्यूटी अकाउन्टेन्ट जनरल हुए। वहाँ भी आपने अपनी अच्छी कार्य्यं कुशलता दिखलाई। इसके बाद लगभग ईसवी सन् १९२७ में आप २५०) मासिक वेतन पर मिलिटिरी सेक्रेटरी हुए । इन्दौर राज्य के फौजी विभाग को आपने इतनी उत्तमता के साथ संगठित किया कि जिसकी प्रशंसा तत्कालीन कमान्डर-इन-चीफ तथा अन्य उच्च अफसरों ने की । आपने फौजी विभाग में नवीन जीवन सा डाल दिया। ईसवी सन् १९३३ में आपने अपने पद से अवसर ग्रहण किया । ३८
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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