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________________ जगत् सेठ का इतिहास पर उसने उनको फिर छोड़ दिया। इन सब घटनाओं का परिणाम धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते पलासी के युद्ध में परिणित हुआ, जिसमें मीरजाफर के घोर विश्वासघात से सिराजुद्दौला की भयङ्कर पराजय हुई और उसके जीवन का नाटक अत्यन्त दुःखान्त रूप से समास हुमा। मीरजाफर और जगत् सेठ पलासी के इतिहास प्रसिद्ध युद्ध के पश्चात् नये नबाब का चुनाव करने के निमित्त जगत् सेठ के मकान पर लगातार तीन दिन तक मंत्रणा चलती रही। लोगों का खयाल था कि जगत् सेठ अवश्य मीरजाफर को नबाब चुनने के लिए अपना मत देंगे क्योंकि उसने उन्हें सिराजुद्दौला की कैद से छुड़ाया था। मगर लोगों का खयाल ग़लत निकला । जगत् सेठ ने स्पष्ट कह दिया कि जिस राजनीति के साथ असंख्य लोगों के हिताहित का सम्बन्ध है उसमें व्यक्तिगत सम्बन्ध को महत्व नहीं दिया जा सकता। वे अपनी सटस्थवृत्ति से रत्ती भर भी टस से मस न हुए। इस अवसर पर राजशाही की महारानी भवानी की तरफ से-जोकि सारे प्रान्त में भद्ध बङ्गेश्वरी की तरह पूजनीय मानी जाती थी-जो सन्देश भाया था वह भाज भी इतिहास के पृष्ठों पर कुन्दन की तरह चमक रहा है . *बङ्गाल का भाग्य विदेशी व्यापारियों के हाथ में देने की जो सलाह दे, उसे इस पत्र के साथ भेजी हुई सिन्दूर, चुंदड़ी और बंगड़ी (चूड़ी) मेरी तरफ से भेंट में देना।" ____ अस्तु, मंत्रणा के ये तीन दिन तीन वर्षों के समान बीते और अन्त में कई अन्तरङ्ग प्रभावों में कारण मीरजाफर ही वङ्गाल का नवाब चुना गया। __ मीरजाफर के बङ्गाल की मसनदपर आते ही बङ्गाल का भरा पूरा खजाना खाली होना प्रारम्भ हुआ। ऐसा कहा जाता है करोब छ करोड़ रुपये का चूरा हो गया। जिसमें से अधिकांश विदेशी ब्यापारियों की जेब में चला गया। अभागे अमीचन्द को सम्भवतः कुछ भी न मिला और वह भन्स समय में पागल होकर मरा। - इसके कुछ समय पश्चात् ही मीरजाफर ने अंग्रेज व्यापारियों को टकसाल खोलने का भी हुक्म देविया जिसका भाव इस प्रकार था। - "कलकत्ते में एक टकसाल खोलने की और उसमें सोने चांदी के सिक्के ढालने की परवानगी आज से अंग्रेज कम्पनी को दी जाती है। अंग्रेज कम्पनी मुर्शिदाबाद की टकसाल के बराबर वजन के सिक्के कलकत्ते की छाप से ढाल सकेगी। बंगाल, बिहार और उड़ीसे में उनका चलन होगा, खजाने में भी उनका भरना हो सकेगा। इन सिकों के लिए जो कोई बट्टा व कसर लेगा वह सजा का पात्र होगा"। . . ' करना न होगा कि इस मार्डर का सारा भीषण असर जगत सेठ की कोठी पर पड़ा । उसी दिन IM
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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