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________________ मौसवाल जाति का इतिहास से जगत सेठ का वैभव सूर्य अस्ताचलगामी होने लग गया। इन्हीं दिनों एक बार हाल्वेल नामक एक मुख्य अंग्रेज कर्मचारी ने जगतसेठ से कुछ रकम मांगी। जिसको देने से जगतसेठ ने इन्कार कर दिया, इस पर भयंकर रूप से क्रुन्छ होकर उसने जगलसेठ के सर्वनाश की प्रतिज्ञा की। उसने तारीख ८ मई सन् १७६० को वारन हेस्टिंग्ज को एक पत्र लिखा जिसमें जगतसेठ के लिये निम्नाक्ति शब्द थे: A time may come when they stand in need of the com. pany's protection, in which case they may be assured, they shall be left to satan to be buffeted. अर्थात्-ऐसा भी समय आवेगा जब जगतसेठ को कम्पनी का आभय लेना पड़ेगा। इस समय उसे शैतान के हाथ में पड़कर भारी पीया भोगना पड़ेगी। चारों ओर ऐसी भयंकर परिस्थितियों को देखकर जगतसेठ का मन बहुत उचट गया और चित्त को शान्त करने के लिए अपनी दो हजार सेना सहित, वे सम्मेदशिखर की यात्रा को निकल गये। मीरकासिम और जगतसेठ ... मीरजाफ़र का प्रताप भी बहुत कम समय तक टिका, उसकी बेवकूफी ने उसे बहुत ही शीघ्र शासन के अयोग्य सिद्ध कर दिया और शीघ्र ही उसके स्थान पर उसका दामाद मीरकासिम बङ्गाल की मसनद पर आया। मीरकासिम बड़ा साहसी, बुद्धिमान और राजनीतिज्ञ व्यक्ति था। मगर उसकी किस्मत और उसकी परिस्थिति उसके बिलकुल खिलाफ थी। उसकी प्रकृति इतनी शकाल थी कि अपने अत्यन्त विश्वासपात्र व्यक्ति को भी वह हमेशा सन्देह की दृष्टि से देखता था। उसने जगत्सेठ महताबचंद और महाराजा सरूपचंद को भी इसी शहाय प्रकृति की वजह से मुंगेर में बुलाकर नजरबन्द कर दिया, और जब वह "उधूपानाला" के इतिहास प्रसिद्ध युद्ध में बुरी तरह से हार गया तब केवल इसी प्रतिहिंसा के मारे कि कहीं जगत्सेठ अंग्रेजों से मिलकर अपना काम न जमा लें उसने जगतसेठ और महाराजा सरूप. चंद को गंगा के गर्भ में डूब जाने का आदेश किया। उसी दिन ये दोनों प्रतापी पुरुष राजकारणों की बलिवेदी पर गंगा के गर्भ में समा गये और इस प्रकार इस खानदान के एक अत्यन्त प्रतापी पुरुष का ऐसा दुःखान्त हुआ। जगतसेठ खुशालचंद जिस दुःखान्त नाटक का प्रारम्भ जगवसेठ महताबचंद के समय में हुमा और जिसकी करुणापूर्ण मृत्यु के साथ इसका अन्त हुआ उसका उपसंहार जगतसेठ खुशालचंद के समय में पूरी तौर से हुआ । महताबचंद के साथ ही जगतसेठ के खानदान की आत्मा प्रयाण कर गई। केवल उसका तेजोहीन अस्थि
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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