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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास उतावले स्वभाव का, स्वच्छन्दी और विलास प्रिय पुरुष था। एक ओर उसकी मौसियों के पुत्र, उसके अधिकारी और अलीवर्दीखां के दूसरे रिश्तेदार उसे हटाकर किसी दूसरे को नवाब बनाने की चिन्ता में ये दूसरी ओर जगत् सेठ, जमीदार और व्यापारियों के दिल भिन्न भिन्न कारणों की वजह से वेचैन हो रहे थे। इसी बीच में सिराजुद्दौला ने एक दिन, दिनदहाड़े मुर्शिदाबाद के बाजार में हुसैनकुलीखां नामक एक सरदार का खून करवा डाला। जानकीराम नामक अपने एक प्रतिनिधि का खुले आम अपमान किया, मोहनलाल नामक एक गृहस्थ की बहन को-जो कि उस समय सारे बंगाल में सबसे अधिक सुन्दरी मानी जाती थी-अपने अन्तःपुर में दाखिल कर लिया और मोहनलाल को रुपयों के जोर से ठण्डा कर दिया। इतिहास प्रसिद्ध रानी भवानी की विधवा पुत्री तारा को शय्यासहचरी बनाने के लिए भयङ्कर जाल रचा, जिसके परिणाम स्वरूप उस निर्दोष बालिका को जीते जी चिता में भस्म होजाना पड़ा। इन सब घटनाओं से सारे बंगाल की प्रजा में वह बहुत अप्रिय हो गया था, और इधर अंग्रेज-कम्पनी के साथ भी उसकी शत्रुता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जारही थी। इसी समय में बंगाल के राजनैतिक वातावरण में दो प्रभावशाली पुरुष और दृष्टिगोचर होते हैं। एक उमाचरण जो इतिहास के पृष्ठों पर अमीचन्द के नाम से प्रसिद्ध है। जो वास्तव में पंजाब का रहने बाल था और व्यापार के लिए कलकते में आकर बस गया था। कितने ही व्यक्ति इसी अमीचन्द को जगत् सेठ मानकर, जगत सेठ फतेचन्द और महताबचन्द के निर्मल जीवन पर देश के प्रति विश्वासघात करने की कला कालिमा लगाने का प्रयत्न करते हैं, और कितने ही अमीचन्द के मित्र "माणिकचन्द" को जगत् सेठ मानकर जैन जाति के सेठ माणिकचन्द के सम्बन्ध में निराधार अपवाद फैलाते हैं । यह माणिकचन्द जगत् सेठ माणिकचन्द नहीं प्रत्युत अलीनगर का एक फौजदार था जो पीछे से अंग्रेजों के पक्ष में जा मिला था। यह माणिकचन्द प्राचीन ग्रन्थों में "महाराज" माणिकचन्द के नाम से प्रसिद्ध था। उमाचरण अथवा अमीचन्द के सम्बन्ध में जो प्रमाणभूत बातें मिलती हैं उनसे पता चलता है कि यह कोई मामूली पा राह चलता व्यापारी न था। फ्रेंच मुसाफिर ओम लिखता है कि "उसका विशाल मकान एक राजमहल की तरह था जिसमें सैंकड़ों कमरे थे, उसके पुष्पोद्यान में कई प्रकार के फूलों के वृक्ष खिले हुए थे, उसके मकान के मास-पास दिन-रात हथियारबन्द प्रहरी पहरा देते रहते थे, प्रारम्भ में अंग्रेजों ने भी उसे एक महाराज की ही तरह माना था, मगर बाद में यह अंग्रेजों के आश्रित हो गया।" ___ यह अमीचन्द जगत् सेठ महताबचन्द से भी इस उद्देश्य से मिला था कि वह सिराजुद्दौला को भंग्रेजों के पक्ष में करदे । कहा जाता है इसी बात की खबर सिराजुदौला को मिल जाने से, उसने जगत् सेठ को अंग्रेजों का पक्षपाती समक्ष एक बार कैद कर दिया। मगर मीरजाफर के ज़बर्दस्त विरोध करने ..
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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