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________________ जगत् सेठ का इतिहास वदीखां के सम्मुख होना निश्चित हुना। दूसरे दिन जगत्सेठ नवाब अलीपींखां को लेकर भास्कर पण्डित के पास गये, बात चीत का सिलसिला आरम्भ हुआ, ऐसा कहा जाता है कि उसी समय भवसर पाकर नवाब अलीबर्दी ने अचानक मियान में से तलवार निकाल कर बिजली-वेग से भास्कर पण्डित का सिर उतार लिया। यह कार्य इतनी शीघ्रता से हुभा कि बाहर के लोगों की कौन कहे, मगर पास बैठे हुए जगत् सेठ तक को एक क्षण पश्चात् सब घटना समझ में आई, वे किंकर्तव्यमूद हो गये, वे अकस्मात् बोले "भळीवर्दीखा यह भयङ्कर विश्वासघात" ? अलीवर्दीखां ने मीची गर्दन करके उत्तर दिया "मुर्शिदाबाद की लूट का बदला" । जगत् सेठ ने अत्यन्त दुःखित होकर कहा "बंगाल के सर्वनाश का प्रारम्भ !" दोनों म्यक्ति अत्यन्त दुःखी होकर चुपचाप घर चले आये। इस घटना के पश्चात् जगतसेठ का दिल राजनैतिक चालों और दाव पेंचों से बहुत अधिक फट गया। उन्होंने इस सम्बन्ध में मौन रहना ही उचित समझा। कुछ ही समय पश्चात् उनका और नवाब भलीवर्दीखों का स्वर्गवास हो गया और इनके पश्चात् ही बङ्गाल की पतन लीला जोर शोर से प्रारम्भ हो गई। नवाब सिराजुद्दौला और जगत् सेठ महताबचन्द भलीवर्दीखां के पश्चात् उसका दौहित्र सिराजुद्दौला बहाल की मयाबी मसनद पर भाया और इधर जगत् सेठ फ़तेहचन्द के पश्चात् उनके पौत्र महताबचन्द जगत् सेठ की गद्दी पर आये। उस समय दिल्ली की डूबती हुई शाहनशाहत की कब्र पर अहमदशाह और आदिलशाह जुगनूं की तरह चमक रहे थे। इस अहमदशाह ने भी महताबचन्द को जगत् सेठ की पदवी से और उनके भाई सरूपचन्द को "महाराजा" की पदवी से सम्मानित किया। इसके अतिरिक बङ्गाल के सुप्रसिद्ध जैनतीर्थ “पारसनाथ टेकरी" का सम्पूर्ण स्वामित्व भी शाही फरमान के द्वारा इन दोनों भाइयों को दिया। जगत् सेठ महताबचन्द ने उत्तरी भारत ही की तरह दक्षिणी भारत में भी बहुत बड़ी व्यापारिक प्रतिष्ठा प्राप्त की। मबाब सिराजुद्दौला के सम्बन्ध में इतिहासकारों के अन्तर्गत बहुत गहरा मतभेद पाया जाता है। कुछ इतिहासकार उसे अत्यन्त कुशल और राजनीतिज्ञ व्यक्ति होने का सम्मान प्रदान करते हैं। कोई कहते हैं कि सिराजुद्दौला अंग्रेज़ों का विरोधी था इससे अगरेजों ने उसे एक भयङ्कर मनुष्य की तरह चित्रित किया है। कुछ लोगों का यह विश्वास है कि जगत सेठ और इसके जमीदारों के स्वार्थ सिराजुद्दौला के द्वारा सिद्ध न होने से इन लोगों ने उसे बदनाम करने की कोशिश की। इसके विपरीत कई इतिहासकारों ने उसे अत्यन्त क्रूर, मराधम, विषयान्ध और पाशविकवृत्ति वाला भी चित्रित किया है। कुछ भी हो, मगर इस बात के लिए बहुत से इतिहासकार प्रायः एकमत हैं कि यह K
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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