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________________ भालेवाल जाति का इतिहास here afraitri और जगतसेठ जगतसेठ का हाथ पकड़ कर अलीवर्दीखां बंगाल की मसनद पर आया । इतिहास बतलाता है कि उसके (अलीवर्दीर्खा) धार्मिक जीवन के प्रभाव से सुर्शिदाबाद का राजमहल पवित्र तपोवन के सहश्य हो गया था और बंगाल के वातावरण में शांति और पवित्रता की एक हलकीसी लहर फिर से दौड़ गई थी । मगर बंगाल का प्रचण्ड दुर्भाग्य, जो कि सर्वनाश का विकट अट्टहास कर रहा था, अलीवर्दीखों के रोके म रुका। अलीवर्दीयां को अपने शासनकाल में राज्य व्यवस्था पर शांतिपूर्वक विचार करने के लिये एक क्षण का समय भी न मिला। उसके राज्यकाळ का एक २ क्षण बाहरी आतताइयों से बंगाल की रक्षा करने में ही खर्च हुआ। बंगाल की गद्दी पर उसके पैर रखते ही मरहठों की फौज ने बंगाल को लूटने के इरादे से आक्रमण करना शुरू किये। एक तरफ से बालाजी और दूसरी तरफ से राघोजी बंगाल को तबाह करने के इरादे से आकर उपस्थित हो गये । बंगाल के इतिहास में " बरगी का तूफान" एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना समझी जाती है। बादशाह औरंगजेब पहाड़ी चूहा कह कर जिन मरहठों का अपमान करता था समय पाकर उन्हीं मरहठों ने दिल्ली की बादशाहत को जड़ से हिला दिया । इन्हीं मरहठों मे बंगाल, बिहार और उड़ीसा को भी अपना शिकार बना लिया । जब नवाब अलीवर्दीखां को इस आक्रमण की बात मालूम हुई तो उसने जगत्-सेठ को गोदा गाड़ी नामक सुरक्षित स्थान पर चले जाने की सलाह दी और मुर्शिदाबाद की रक्षा का भार अपने पर लिया । उसने मीर हबीब नामक एक विश्वसनीय सेनाध्यक्ष को जगतसेठ की कोठी और मुर्शिदाबाद की रक्षा का भार सौंप कर स्वयं मराठों की फौज पर आक्रमण कर दिया । मगर ठीक अवसर आने पर मीरहबीब बदल गया और उसने मरहठों को जगत् सेठ की कोठी लूटने का अवसर दे दिया । इसी समय जगत् सेठ की कोठी की इतिहास प्रसिद्ध लूट हुई, जिसमें मरहठों ने सारी कोठी को तहस नहस कर दिया और करीब दो करोड़ की सामग्री को लूट लेगये । अलीवर्दीखां के हृदय पर इस घटना का बहुत ही बुरा असर पड़ा और उसने मन ही मन मराठों से इस घटना का बदला लेने का संकल्प किया । इस घटना को एक वर्ष भी न बीता होगा कि इतने ही में बालाजी और भास्कर पंडित इन दो मरहठे सरदारों ने फिर से बंगाल पर चढ़ाई करदी। इनमें से बालाजी को तो दस लाख रुपया देकर किसी प्रकार वहाँ से बिदा किया गया और भास्कर पण्डित को समझाने का भार जगतसेठ पर आ पड़ा । मानकरा के मैदान में जहाँ भास्कर पण्डित की सेना पड़ी हुई थी, जगत् सेठ उससे समझौता करने को, गये । वहाँ उन्होंने समझौते की बात चीत की। इस बात चीत का निर्णय दूसरे दिन नबाब अली, J
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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