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________________ रैदासनी साहुकार पेठ में "मेसर्स हजारीमल रूपचन्द" के नाम से बैशिंग की दुकान है। इस फर्म पर डायमण्ड डीलिंग व्यवसाय भी होता है । सेठ भीमराज हुकुमचंद सावण सुखा, रतनगढ़ इस परिवार का मूल निवास रतनगढ़ है। यहाँ सेठ खेतसीदासजी तथा अक्षयसिंहजी नामक दो भ्राता साधारण व्यापार करते थे। इनके कोई संतान नहीं हुई।, भतः इनके यहाँ रूणियाँ ( बीकानेर ) से भोमराजजी दत्तक आये । सेठ भोमराजजी का जन्म संवत् १९०७ में हुआ । आप यहाँ से कलकत्ता गये, तथा सेठ " माणकचन्द ताराचन्द" वेद के यहाँ सर्विस की । तथा पीछे " सेठ तेजरूप गुलाबचन्द" की भागीदारी में चलानी का काम शुरू किया । आपका स्वर्गवास संवत् १९५७ में हुआ। आपके पुत्र शोभाचन्दजी, रुपलालजी तथा जयचंदलालजी हैं। शोभाचन्दजी रतनगढ़ में रहते हैं। तथा जयचन्दजी कलकत्ता में सर्विस करते हैं। इनके पुत्र मोहनलालजी हैं। बाबू भोमराजजी के मक्षले पुत्र रुघलालजी का जन्म संवत् १९४२ हुआ। पिताजी के स्वर्गवासी होने पर आप दलाली करने लगे, तथा इधर संवत् १९८३ से रोसड़ाघाट (दभंगा) में रुघाल हुकुमचन्द के नाम से चलानी का व्यापार आरम्भ किया। इसके बाद आपने सिंधिया ( दरभंगा ) में रुघलाल इन्द्राजमल तथा ढोली ( मुजफ्परपुर) में भीमराज सावणसुखा के नाम से आढ़त का व्यापार शुरू किया । इसके पश्चात् संवत् १९८७ में नं० २ राजा उमंड स्ट्रीट में अपनी फर्म स्थापित की । सेट रुवलालजी के भीमराजजी तथा इन्द्राजमलजी नामक पुत्र हैं। भीमराजजी ने अपने पिताजी के बाद व्यापार को बढ़ाने में काफी परिश्रम किया है। आपके पुत्र हुकुमचन्दजी हैं । रेदासनी सेठ मोतीलाल रामचन्द्र रेदासनी, नसीराबाद (खानदेश) 1 यह परिवार पीह (जोधपुर स्टेट) का निवासी है। वहाँ से लगभग १०० साल पूर्व सेठ शिवचन्दजी और अमरचन्दजी दो भ्राता व्यापार के लिये नसीराबाद (जलगांव के समीप) आये । सेठ शिवचन्द जी संवत् १९३५ में स्वर्गवासी हुए। आपके छोटे बंधु अमरचन्दजी के पुत्र मानमलजी तथा पौत्र रामन्नन्द्रजी हुए । सेठ रामचन्द्रजी ने इस दुकान के व्यापार को बहुत उन्नति दी । आपके पुत्र सेठ मोतीलालजी हुए सेठ मंांतीलालजी रेदासनी — आपका जन्म सम्वत् १९१६ में हुआ । आप खानदेश के ओसवाल समाज में गण्य मान्य तथा समझदार पुरुष थे । आप बड़े सरल स्वभाव के धार्मिक प्रवृति वाले पुरुष थे । कुछ मास पूर्व सम्वत् १९९० में आपका स्वर्गवास हो गया है। आपके पुत्र रंगलालजी, बंशीलालजी, बाबूकालजी तथा प्रेमचन्दजी हैं। रंगलालजी का जन्म सन् १९०५ में तथा बंशीलालजी का सत् १९०९ में हुआ। आप दोनों सज्जन अपने व्यापार को सम्हालते हैं। आपके यहाँ आसामी लेन देन का व्यापार होता है । ६३७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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