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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास सेठ गणेशदास जुहरमल सांवण सुखा, सरदार शहर जब सरदारशहर बसा तब इस परिवार के सेठ टीकमचन्दजी, मेघराजजी और द्वेरामजी तीनों भाई सवाई से यहां आकर बसे । एवम् साधारण खेतीबाड़ी एवम देन लेन का व्यापार करते रहे । सेठ टीकमचन्दजी के सात पुत्र हुए मगर इस समय उनके परिवार में कोई नहीं है। सेठ द्वेरामजी के भैरोंदानजी नामक एक पुत्र हुआ जिसका स्वर्गवास होगया । वर्तमान में उनके पुत्र मूलचन्दजी और शोभारामजी रंगपुर में अपना व्यापार करते हैं । मूलचन्दजी के भीखनचन्दजी और शोभाचन्दजी के फकीरचन्दजी नामक पुत्र हैं। सेठ मेघराजजी सरदारशहर ही में रहे। आप के सेढ़मलजी और गणेशदासजी नामक दो पुत्र थे । सेठ सेठमलजी के मूलचन्दजी, जुहारमलजी, नेमिचन्दजी, और हरकचंदजी नामक पुत्र हुए। इनमें से सेठ जुहारमलजी का स्वर्गवास होगया है । मूलचन्दजी के द्वारा इस फर्म की बहुत तरक्की हुई। भाज कल १५ वर्षों से आप सरदारशहर में ही रहते हैं । हरकचन्दजी दत्तक चले गये । एवम् आज कल फर्म का संचालन सेठ नेमीचन्दजी ही करते हैं । आप योग्य एवम् समझदार सज्जन हैं । आपके बुधमलजी, सुमेरमलजी और चम्पालालजी नामक तीन पुत्र हैं। सेठ गणेशदासजी इस परिवार में नामांकित दास मिलापचन्द के नाम से साझे में फर्म स्थापित की। स्वतंत्र व्यापार कर लिया । इसके पूर्व आप नरसिंहदास रहे। इसमें आपकी प्रतिभा से बहुत उन्नति हुई। नामक पुत्र हुए। जिनका स्वर्गवास होगया । इनके यहाँ हरकचन्दजी दत्तक हैं। मोतीलालजी और माणकचन्दजी पुत्र हैं । आपकी फर्म पर १३ नारमल लोहिया लेन में देशी कपदे का थोक व्यापार होता है। आपका परिवार तेरा पन्थी संप्रदाय का अनुयायी है । व्यक्ति हुए । आप ही ने संवत् १९६० में गणेशफिर “ गणेशदास जुहारमल" के नाम से अपना तनसुखदास आंचलिया की फर्म पर काम करते आप व्यापार चतुर थे । आपके मिलापचन्दजी आपके इस समय मेसर्स हजारीमल रूपचन्द सावण सुखा का परिवार, मद्रास इस परिवार के मालिकों का मूल निवास स्थान बीकानेर का है । आप श्वे० जैन समाज के मंदिर आम्नाय को माननेवाले सज्जन हैं । सब से पहले इस परिवार में से हजारीमलजी सावणसुखा संवत् १९२१ में बीकानेर से मद्रास आये। आपने मद्रास में आकर ब्याज की फर्म स्थापित की। आपके हाथों से इस फर्म की अच्छी उन्नति हुई । आपका संवत् १९४९ में स्वर्गवास हो गया । आपके पश्चात् आपके नाम पर आपके भाई के पुत्र रूपचन्दजी दत्तक लाये गये । के मन्दिर का काम अच्छी तरह से देखा । श्री रूपचन्दजी का संवत् १९५७ में स्वर्गवास हो गया । आपके पुत्र चम्पालालजी हुए । इनका जन्म संवत् १९५० में हुआ । आप ही इस समय इस फर्म के कारबार को सम्हाल रहे हैं। आपके पुत्र रतनचन्दजी बालक हैं । इस परिवार के लोगों ने चन्द्राप्रभुजी इस परिवार का दान धर्म की ओर विशेष लक्ष्य है । आप ही ने यहाँ की दादावाड़ी का . उद्यापन करवाया। साथ ही दादावाड़ी के एक तरफ का पर कोटा भी इस परिवार की ओर से बनाया गया है । आप ही के द्वारा दादावाड़ी के मन्दिर में संगमरमर के पत्थरों की जुडाई हुई है। आपकी मद्रास ६६६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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