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________________ सांढ कारी रखते हैं । बणी के ओसवाल समाज में आपका परिवार नामाङ्कित समझा जाता है। आपके पुत्र लोणकरणजी तथा मूलचन्दजी हैं । सेठ पन्नालाल ताराचंद कोटेचा, वणी ( बरार ) इस परिवार का निवास बहू (मारवाद) है। देश से सेठ ताराचन्दजी कोटेचा लगभग ३० साल पूर्व नांदेपेरा आये, तथा वहाँ से वणी आकर सेठ " हीरालाल हजारीमल " फर्म पर कार्य किया। इधर आप १० सालों से कपड़ा तथा सराफी का अपना घरू व्यापार करते हैं। आपका जन्म संवत् १९३५ में हुआ । आप वणी के ओसवाल समाज में प्रतिष्ठित सज्जन हैं। तथा मिलनसार एवं समझदार व्यक्ति हैं । आपके पुत्र बालचन्दजी कोटेचा का जन्म सं० १९५९ में आप भी तत्परता से व्यापार में भाग लेते हैं तथा उत्साही युवक हैं। हुआ । सेठ ताराचन्दजी के भतीजे कालूरामजी कोटेचा सेठ " हीरालाल हजारीमल" नामक फर्म के १० साल से भागीदार हैं। आपका जन्म संवत् १९५३ में हुआ है । आप होशियार तथा सज्जन व्यक्ति हैं । सांढ सांढ गौत्र की उत्पत्ति—कहा जाता है कि संवत् ११७५ में सिद्धपुर पाटण में जगदेव नामक एक राजपूत सरदार निवास करता था। इसके सूरजी, संखजी, साँवलजी, सामदेवजी आदि ७ पुत्र हुए । इनको आचार्य हेमसूरिजी ने जैन धर्म का प्रतिबोध दिया। सांवलजी का बड़ा पुत्र बड़ा मोटा ताजा था अतः इनको पाटण के राजा सिद्धराज ने "संड मुसंड" कहा। फिर इन्होंने राजा के मस्त सांढ़ को पछाड़ा, इससे इनकी पदवी सांढ हो गई और भागे चलकर यह सांढ गौत्र हो गई । इसी तरह जगदेव के अन्य पुत्रों से सुखाणी, सालेचा, पुनमियाँ आदि शाखाएँ हुई । सांढ तेजराजजी का खानदान, जोधपुर इस परिवार के पूर्वज सांढ भगोतीदासजी मेड़ते में रहते थे । इनके पौत्र शोभाचन्दजी ( निहालचन्दजी के पुत्र ) ने जोधपुर में आकर अपना निवास बनाया । इनके पुत्र खींवराजजी हुए । विक्रम की अठारहवीं शताब्दि के मध्य काल में इस परिवार का व्यापार बहुत उन्नति पर था। महाराजा बख्तसिंहजी के समय जोधपुर राज्य से इस खानदान का लेन-देन का बहुत सम्बन्ध था । स्टेट के बाइसों परगनों में इनकी दुकाने थीं । इन दुकानों के लिये जोधपुर महाराज बख्तसिंहजी विजयसिजी तथा मानसिंहजी ने इस परिवार को कस्टम की माफ़ी के परवाने बख्शे, तथा अनेकों रुक्के देकर इस खानदान . के गौरव को बढ़ाया । सांढ़ खींवराजजी, सिंघवी इन्द्रराजजी के साथ एक युद्ध में गये थे। इसी तरह डीड़वाने की ५९९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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