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________________ ओसवाल जाति का इतिहास परिवार का सम्बन्ध है। सेठ रिदमलजी के पुत्र रावतमलजी तथा रतनलालजी और जयसिंहदासजी के पुत्र चुन्नीलालजी हुए सेठ चुनीलालजी संवत् १९४५ में स्वर्गवासी हुए। सेठ रावतमलजी बड़े साहसी पुरुष थे। देश से आप मद्रास आये, और वहाँ रेजिमेंटल बैंस का काम करते रहे। वहाँ से आप फोजों के साथ बैंकिंग व्यापार करते हुए बलारी, कामठी आदि स्थानों में होते हुए लगभग संवत् १९२५ में त्रिचनापल्ली आये। और यहीं अपनी स्थाई दुकान स्थापित करली। आपने इस कुटुम्ब की खूब प्रतिष्ठा बढ़ाई । संवत् १९७३ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके दो साल बाद आपके छोटे भाई रतनलालजी गुजरे। सेठ रावतमलजी के इन्द्रचन्दजी, जोगराजजी तथा कवरलालजी नामक ३ पुत्र हैं। इनमें जोगराजजी सेठ चुनीलालजी के नाम पर दत्तक गये। आपका जन्म संवत् १९४८ में हुआ। आप "रावतमल जोगराज" के नाम से येढ़तरू बाजार त्रिचनापल्ली में बैकिंग व्यापार करते हैं । तथा यहां के ओसवाल समाज में अच्छे प्रतिष्ठित माने जाते हैं। धार्मिक कामों की ओर भी आपका अच्छा लक्ष है। आपके पुत्र चम्पालालजी २० साल के हैं। तथा व्यापार में भाग लेते हैं। सेट इन्द्रचन्दजी के यहां “इन्द्रचन्द सम्पतलाल" के नाम से त्रिचनापल्ली में व्यापार होता है। इन्द्रचन्दजी धर्म के जानकार व्यक्ति हैं। आपका जन्म संवत १९३२ में हुआ। आपके पुत्र सम्पतलाल जो ३० साल के हैं। कँवरलालजी बहुत समय तक जोगराजजी के साथ व्यापार करते रहे । आप इस समय लोहावट में रहते हैं। रतनलालजी के पुत्र मिश्रीलालजी हैं। यह परिवार मंदिर आम्नाय का है। सेठ हजारीमल कँवरीलाल पाराख. लोहावट ( मारवाड़) यह परिवार लगभग दो शताब्दि से लोहावट में निवास करता है। इस परिवार के पूर्वज मुलतानचन्दजी पारख के हजारीमलजी तथा रतनलालजी नामक २ पुत्र हुए। इन दोनों भाइयों का जन्म क्रमशः संवत् १९१४ तथा संवत् १९२१ में हुआ। संवत् १९३२ में इन बंधुओं ने धमतरी में दुकान की। संवत् १९६२ में सेठ हजारीमलजी ने बम्बई में दुकान की। इसके १० साल बाद इम दोनों भाइयों का कारवार अलग २ होगया। सेठ हजारीमलजी का परिवार-सेठ हजारीमलजी ने इन दुकान के व्यापार तथा सम्मान को विशेष बढ़ाया। संवत् १९८४ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके शिवराजजी, कँवरलालजी, रेखचन्दजी, मंसुखदासजी, तथा विजयलालजी नामक ५ हुए। इनमें सेठ शिवराजजी का स्वर्गवास संवत् १९६९ में तथा कँवरलालजी का संवत् १९७० में हुआ। शेष बंधु विद्यमान हैं। इन बंधुओं के यहाँ "हजारीमल कंवरलाल" के नाम से बिट्ठलवाड़ी बम्बई में आढ़त का व्यापार होता है । इस दुकान के व्यापार की सेठ शिवराजजी ने उन्नति की। उनके पश्चात् पारख रेखचन्दजी ने कारोबार बढ़ाया । वह परिवार लोहावट में अच्छी प्रतिष्ठा रखता है। सेठ शिवराजजी के पुत्र दडमलजी कन्हैयालालजी, सेठ रेखचंदजी के पाबूदानजी, सोहनराजजी, सेठ मंसुखदासजी के नेमीचन्दजी तथा राणूलालजी और विजयलालजी के जमनालालजी तथा पुखराजजी हैं। यह परिवार मन्दिर मार्ग य आम्नाय मानता है। सेठ रतनलालीका परिवार-सेठ रतनलालजी के पेमराजजी, कुंदनलालजी, सतीदानजी, ५५०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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