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________________ पारस चंपालालजी तथा जुगराजजी नामक ५ पुत्र हुए। इनमें पेमराजजी १९६२ में तथा कुन्दनमलजी १९६३ में स्वर्गवासी हो गये हैं । शेष विद्यमान हैं । इस परिवार की धमतरी, तथा जगदलपुर में दुकाने हैं। सेठ मोतीलाल हीरालाल पारख, सिंगरनी कालरी (निजाम ) इस परिवार का मूल निवास लोहावट (मारवाड़) है। इस परिवार के पूर्वज सेठ रामचन्द्रजी के सुजानमलजी, महासिंहदासजी, सालमचन्दजी तथा मुलतानचन्दजी नामक ४ पुत्र हुए। इनमें सेठ महासिंहदासजी पारख के पूनमचन्दजी, मोतीलालजी मोहनलालजी व करनीदानजी नामक ४ पुत्र हुए। इनमें सेठ मोतीलालजी अपने पुत्र हीरालालजी को साथ लेकर संवत् १९५५ में सिंगरनी कॉलेरी आये, तथा सराफी और आदत का कार्य चालू किया । सेठ मोतोलालजी ने इस दुकान के व्यापार को बढ़ाया। आपका स्वर्गवास सम्वत् १९७६ में हुआ। आपके हीरालालजी, चांदमलजी, रेखचन्दजी, कुन्दनमलजी और सुखलालजी नामक ५ पुत्र हुए। जिनमें चांदमलजी संवत् १९७८ में स्वर्गवासी हो गये । यह परिवार मंदिर मार्गीय आम्नाय का मानने वाला है। आप सबाने तथा समझदार व्यक्ति हैं। जन्म संवत् १९५० में 'हुआ। आपके इनके पुत्र अनोपचन्दजी हैं । सेठ सेठ हीरालालजी का जन्म संवत् १९४० में हुआ । आपके पुत्र नेमीचन्दजी स्वर्गवासी हो गये हैं। सेठ रेखचन्दजी का पुत्र जेठमलजी २३ साल के हैं । आप व्यापार में भाग लेते हैं। कुन्दनमलजी का जन्म १९५६ में हुआ । आपके कॅवरलालजी, चम्पालालजी तथा खेतमलजी नामक ३ पुत्र हैं। इसी तरह सुखलालजी के पुत्र भेर्रोलालजी हैं। यह परिवार लोहावट के ओसवाल समाज में नामांकित कुटुम्ब माना जाता है । आपके यहाँ सिंगरनी कॉलेरी तथा बेल्लमपल्ली ( निजाम ) में बेकिंग व्यापार होता है। सेठ अमरचन्द रतनचंद पारख, किशनगढ़ इस परिवार के पूर्वज सेठ माणकचन्दजी के पुत्र कुशाल चन्दजी लगभग एक सौ वर्ष पूर्व बीकानेर से किशनगढ़ आये । आपको दरबार ने इज्जत के साथ किशनगढ़ में बसाया, तथा व्यापार के लिए रियायतें दीं । आपके पुत्र पूनमचन्दजी पारख हुए । सेठ पूनमचन्दजी पारख - आप बड़े नामांकित व्यक्ति हुए। आपने व्यवसाय की बहुत उच्चति की, तथा बाहर कई दुकानें खोलीं। आप गरीबों की अन्न वस्त्र से विशेष सहायता करते थे । आप गुप्तदानी थे। इसी तरह की विशेषताओं के कारण आप राज्य, जनता एवं अपने समाज में सम्माननीय व्यक्ति हुए । आपके पुत्र पारख अमरचंदजी विद्यमान हैं । सेठ अमरचन्दजी पारख किशनगढ़ के ओसवाल समाज में तथा व्यापारिक समाज में अच्छी प्रतिष्ठा रखते हैं। राज्य में आपको दरबार के समय कुर्सी प्राप्त है। आपके यहाँ बैंकिंग व्यापार होता है । आपके रतनचन्दजी, लक्ष्मीचंदजी तथा उमरावचन्दजी नामक तीन पुत्र हैं। इन सज्जनों में श्री रतनचन्दजी ने सन् १९३३ में बी० ए० पास किया है, तथा इस समय आप इलाहाबाद में एल० एल० बी० का अध्ययन कर रहे हैं । आप बड़े सज्जन व समझदार व्यक्ति हैं। आपके छोटे भ्राता लखमीचन्दजी मेट्रिक में तथा उमराबचन्दजी छठी क्लास में पढते हैं । ५५१
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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