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________________ डाया सेठ हरकचन्दजी और रतनचन्दजी भी योग्य निकले। आपने भी फर्म की बहुत उन्नति की क्या अपनी एक शाखा मेसर्स हरकचन्द नथमल के नाम से कलकत्ता में खोली। जिसका नाम आजकल हरकचन्द रावतमळ पड़ता है। इस पर जूट. कपड़ा तथा चलानी का काम होता है। आप दोनों भाई भकग हो गये तथा भाप लोगों का स्वर्गवास भी हो गया। ___सेठ रतनचन्दजी के नथमलजी नामक पुत्र हुए। आपका स्वर्गवास हो गया। आपके चम्पा. कालजी, और दीपचन्दजी दो पुत्र हैं। सेठहरकचन्दजीके रावतमकजी एवम् पूनमचन्दजी नामक पुत्र हैं। आजकल उपरोक्त फर्म के मालिक आप ही है। आप दोनों भाई मिलनसार और सजन व्यक्ति हैं। भाप लोगों का कलकत्ता के अलावा सालांगा नामक स्थान पर भी रावतमल मोतीलाल के नाम से जूट का व्यापार होता है। आप तेरापंथी जैन श्वेताम्बर संप्रदाय के हैं। रावतमलजी के बुधमलजी, मनालालजी और माणकचन्दजी तथा पूनमचन्दजी के मोतीलालजी नामक पुत्र हैं। सेठ शेरसिंह: मालकचन्द डागा, बेतूल इस परिवार का मूल निवास बीकानेर है। देश से प्रेड शेरसिंहजी डागा संवत् १८९१ में बदनूर भाये, तथा हुकुमराज मगनराज नामक दुनन पर मुनीम हुए। मनीमात करते हुए सेठ शेरसिंहजी ने माल गुजारी जमाई और अपना घरू म्यामार भी चालू लिया। दरबार में इनको कुर्सी प्राप्त थी संवत् १९३९ में .. डागा शेरसिंहजी का स्वर्गवास हुभा, मापके पुत्र माणकचन्दजी डागा का जन्म संवत् १९१० में हुआ। आपने ३०।१० गांव जमीदारी के खरीद किये, आप भी यहाँ के राजदरबार व जनता में अच्छी इजत रखते थे, आपने अपनी मृत्यु के समय अपनी कन्या सौ. भीखीबाई को लगभग 1 लाख रुपयों की सम्पत्ति प्रदान की। इनके स्वर्गवासी होने के बाद इनकी धर्म पत्नी ने ५ हजार की लागत से मेन डिस्पेंसरी में अपने पति के स्मारक में उनके नाम से । वार्ड बनवाया, संवत् १९७० में गगा माणकचंदजी का स्वर्गवास हुआ, आपके नाम पर कस्तूरचन्दजी डागा बीकानेर से दत्तक लाये गये। डागा कस्तूरचन्दजी का जन्म संवत् १९५५ में हुया आपका कुटुम्ब भी वेतूल जिले का प्रतिष्ठित तथा मातवर कुटुम्ब है, आपके यहाँ वेतूल में शेरसिंह माणकचंद गगा के नाम से जमीदारी तथा सराफी म्यवहार होता है डागा कस्तूरचन्दजी के पुत्र हरकचंदजी १० साल के हैं। सेठ भवानीदास अर्जुनदास, डागा रायपुर लगभग १०० साल पूर्व बीकानेर से जागा मेरोंदानजी के पुत्र भवानीदासजी रायपुर आये और यहाँ उन्होंने कपड़ा तम्बाकू व घी का व्यापार शुरू किया । डागा भवानीदासजी के जावंतमलजी तथा अर्जुनदास जो नामक २ पुत्र हुए। लगभग संवत् १९०० से भवानीदासजी के पुत्र भवानीदास अर्जुनदास तथा भवानीदास जावंतम के नाम से व्यवसाय करते हैं। सेठ अर्जुनदासजी डागा रायपुर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे आपका १०९ ५४५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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