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________________ ओसवाल जाति का इतिहास भापका जन्म संवत् १९७१ के कार्तिक में हुआ। आप बड़ी योग्यता एवम बुद्धिमानी से फर्म के सारे कार्य का संचालन कर रहे हैं। आप नवीन विचारों के शिक्षित सज्जन हैं। यह परिवार बाईस संप्रदाय का अनुयायी है। सेठ हरकचंदजी मंगलचंदजी डागा सरदार शहर सेठ सांवतरामजी के पुत्र पनेचन्दजी घड़सीसर नामक स्थान से चल कर सरदार शहर में आकर बसे। आप सगा गौत्र के सज्जन हैं। यहाँ से फिर आप कलकत्ता गये एवम वहां दलाली का काम प्रारंभ किया। इसके पश्चात् आपने कपड़े की दुकान खोली आपका स्वर्गवास हो गया। आपके तीन पुत्र उदयचन्दजी, छोगमलजी और चौथमलजी हुए। उदयचन्दजी के पुत्र कालूरामजी हुए । आपका भी स्वर्गवास हो गया। आपके पुत्र बुधमलजी वहीं रहते हैं। चौथमलजी के पुत्र हनुमानमलजी पहले कलकत्ते में कपड़े का व्यापार करते रहे। आज कल किशनागंज (पूर्णियाँ ) में पाठका यापार करते हैं । भापके पुत्र बिरदीचन्दजी और रामलालजी दलाली करते हैं। सेठ छोगमलजी के जुहारमळनी, उमचन्दजी और हरकचन्दजी तीन पुत्र हुए। जिनमें से प्रथम दो निःसन्तान स्वर्गवासी हो गये। सेठ छोगमलजी की मृत्यु के समय उनके पुत्र हरकचन्दजी की उन्न केवल १५ वर्ष की थी इस छोटी उम्र में ही आपने बड़ी होशियारी से कटपीस का व्यापार आरंभ किया। इसमें आपको बहुत लाभ हुमा । आपने अपने हाथों से लाखों रुपये कमाये । इसके पश्चात् विशेष रूप से बाप देश ही में रहे। आपका स्वर्गवास हो गया । आप भी जैन श्वेताम्बर तेरापंथी संप्रदाय के अनुयायी थे। आपके मंगलचन्दजी नामक एक पुत्र हैं। सेठ मंगलचन्दजी समझदार, शिक्षित और मिलन सार व्यक्ति हैं। आपके धार्मिक विचार उंचे हैं। आजकल आप नं० २ राजा उडमंड स्ट्रीट कलकत्ता में जूट, कटपीस तथा बैंकिंग का काम कर रहे हैं। तथा मंगलचंद डागा के नाम से फारविसगंज (पूर्णिमा) में जूट का व्यापार करते हैं। आपके नथमलजी, चम्पालालजी, सुमेरमलजी, श्रीर चम्पालालजी नामक पुत्र हैं। नथमलजी व्यापार में सहयोग देते हैं। सेठ रतनचन्दजी हरकचंदजी डागा का परिवार, सरदार शहर करीव ९० वर्ष पूर्व जब कि सरदार शहर बसा इस परिवार के पुरुष सेठ लछमनसिंहजी के पुत्र दानमलजी, कनीरामजी और जीतमलजी तीनों ही भाई घड़सीसर नामक स्थान से चल कर सरदार शहर में आकर बसे । भाप तीनों ही भाई संवत् १९०० के करीब नौगाँव (आसाम ) नामक स्थान पर गये और फर्म स्थापित कर जूट एवम् दुकानदारी का काम प्रारम्भ किया। इस समय इस फर्म का नाम दानमल कनीराम रक्खा था जो आगे चलकर कनीराम हरकचन्द हो गया। इस फर्म में आप लोगों को अच्छी सफलता रही। आप लोगों का स्वर्गवास हो गया । सेठ कनीरामजी के हरकचन्दजी, और दाममलजी के रतनचन्दजी नामक पुत्र हुए। जीतमलजीके कोई पुत्र न होने से उनके नाम पर हरकचन्दजी दत्तक रहे। ५४४
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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