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________________ सेठ हस्तमल लखमीचंद-डागा बीकानेर . कई वर्ष पूर्व इस परिवार के व्यक्ति जेसलमेर से बीकानेर में जाकर बस गये । भागे चलकर इस खानदान में क्रमशः सुजानपालजी एवम् अमरचन्दजी हुए। अमरचंदजी के दो पुत्र हुए जिनके नाम सेठ रूपचन्दजी एवम् सेठ खूबचन्दजी था। सेठ खूबचन्दजी के परिवार के लोग आज कल अपना स्वतंत्र व्यापार करते हैं। उपरोक्त वर्तमान फर्म सेठ रूपचन्दजी के वंश की है। सेठ रूपचंदजी अपना व्यवसाय बीकानेर ही में करते रहे। आपके चन्दनमलजी मामक पुत्र हुए। भाप बड़े होशियार व्यक्ति थे। आपने अमृतसर में शाल कुमाले के व्यापार में बहुत सफलता प्राप्त की। भापका स्वर्गवास हो गया। आपके हस्तमलजी नामक एक पुत्र हुए। सेठ हस्तमलजी-आप संवत् १९२५ के करीब पहले पहल व्यापार के निमित्त कलकत्ता गये। पश्रात् १९३२ में आपने सेठ अमोलकचन्दजी पारख के साझे में फर्म स्थापित कर उस पर रेशमी कपड़े का व्यापार प्रारंभ किया। यह फर्म संवत् १९५० तक अमोलकचंद लखमीचंद के नाम से चलती रही। कुछ वर्षों के पश्चात् पारखों से आपका साझा अलग हो गया। इसी समय से आपकी फर्म पर हस्तमल लखमीचन्द नाम पड़ने लगा। सेठ हस्तमलजी बड़े बुद्धिमान, मेधावी एवम् व्यापार चतुर पुरुष थे। आपके ही कठिन परिश्रम का कारण है कि भाज यह फर्म बहुत उन्नतावस्था में चल रही है। संवत् १९७२ के मिगसर में आपका बीकानेर में स्वर्गवास हो गया। आपके लखमीचंदजी नामक पुत्र थे। सेठ लखमीचन्दजी-आपका जन्म संवत् १९३७ का था । भापभी अपने पिताजी की तरह बड़े बुदि. मान एवम व्यापार चतुर पुरुष थे । अपने पिताजी की मौजूदगी ही में आप फर्म का संचालन कार्य करने लग गये थे। इस फर्म में बीकानेर निवासी सेठ भैरोंदानजी चोपड़ा कोठारी का संवत् १९६७ से ही साझा प्रारंभ हो गया था जो अभी एक साल से अलग हो गया है। इस समय सेठ भैरोंदानजी के पुत्र अपना अलग व्यापार करते हैं। सेठ लखमीचन्दजी बड़े कर्मण्य व्यक्ति थे। आपने संवत् १९६९ में अपनी फर्म पर जापान, अर्मनी आदि विदेशी स्थानों के रेशमी तथा सिल्की कपड़े का डायरेक्ट इम्पोर्ट करना प्रारंभ किया। संवत् १९७५ में आपने जसकरनजी सिद्धकरनजी के साझे में यहीं मनोहरदास स्ट्रीट नं. 1 में अपनी एक और फर्म खोली तथा इस पर भी वही सिक्क तथा रेशम का व्यापार प्रारंभ किया। संवत् १९७९ में बम्बई में झकरिया मसजिद के पास आपने मेसर्स हस्तमल लखमीचंद के नाम से यही उपरोक्त व्यापार करने के लिये फर्म खोली । इसके २ वर्ष पश्चात् अर्थात् संवत् के १९८१ मिगसर में आपने देहली में केसरीचंद माणकचन्द के नाम से अपनी एक और ब्रांच खोली। इस पर रेशमी कपडे का व्यापार प्रारंभ हआ। ये सब फर्मे आपके जीवन काल तक चलती रहीं। संवत् १९८२ चैत्र में आपका स्वर्गवास हो गया । पश्चात् उपरोक्त देहली एवम बम्बई वाली फर्म उठाली गई। सेठ लखमीचंदजी बड़े प्रतिभा सम्पान्यतिथे । बीकानेर की पंचायती में आपका खास स्थान था। भापके केसरीचन्दजी एवम माणकचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। खेद है किया केसरीचन्दजी का युवावस्था ही में स्वर्गवास हो गया। आप एक होनहार नवयुवक थे। वर्तमान में इस फर्म के संचालक सेठ लखमीचन्दजी के द्वितीय पुत्र पा. माणकचन्दजी है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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