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________________ धाड़ीवाल श्री लालसिंहजी ने पहले पहल दरबार पेशी का काम किया । पश्चात् तहसीलदार रहे । इस समय आप स्टेट के रेव्हेन्यू आफिसर हैं । आप मिलनसार शिक्षित एवम् सज्जन व्यक्ति हैं । आपके प्रतापसिंहजी, कुबेरसिंह, हिम्मतसिंहजी, प्रहलादसिंहजी, गिरिशकुमारजी और सुमतिकुमारजी नामक ६ पुत्र हैं। बाबू प्रतापसिंहजी एम० ए० एल० एल० बी० और बाबू कुमेरसिंहजी बी० ए० हैं । आप दोनों भाई सज्जन और नवीन विचारों के हैं। आप मन्दिर संप्रदाय के मानने वाले हैं। सेठ झवालालजी के पुत्र धूलसिंहजी नाहरगढ़ नामक परगने के इजारे का काम करते रहे । । इनके ४ पुत्रों में से दो का स्वर्गवास होगया । शेष में एक लखपतसिंहजी आगरे में तहसीलदार हैं। तथा दूसरे विशनसिंहजी सीतामऊ स्टेट में सर्विस करते हैं । घाड़ीवाल धाड़ीवाल गौत्र की उत्पत्ति महाजन वंश मुक्तावली में लिखा है कि विभंग पाटन नगर में डेहूजी नामक एक उरभी वंशीय राजपूत रहते थे। वे इधर उधर धाड़े मारकर अपनी आजीविका चलाते थे। एक बार का प्रसंग है कि उहड़ खीची राजपूत अपनी लड़की का ढोला लेकर शिसोदिया राजा रणधीर के पास जा रहा था। रास्ते में डेहूजी मे इसे लूट लिया और इसकी लड़की बदन कुँवर को अपने साथ ले आया । इस बदन कुँवर से सोहड़ नामक एक पुत्र हुआ । इसे संवत् ११६९ में श्री जिनदत्त सूरिजी ने जैन धर्म का प्रतिबोध देकर जैन धर्मा वलम्बी बनाया। इसकी माँ धाड़े से लाई गई थी, अतएव इसका धादेवा गौत्र स्थापित हुआ । कालान्तर में यही धाड़ीवाल के नाम से पुकारा जाने लगा । सेठ मुल्तानचंद हीरचंद धाड़ीवाल, रायपुर यह परिवार बगडी ( मारवाड़ ) का निवासी है। वहाँ से सेठ सरदारमलजी के बड़े पुत्र मुलतानचंदजी संवत् १९२४ में औरंगाबाद गये । वहाँ से आप संवत् १९२८ में अमरावती होते हुए जबलपुर गये तथा वहाँ रेजिमेंट के साथ कपड़े का व्यापार शुरू किया । जबलपुर से आप अपने छोटे भ्राता हीरचंद जी को लेकर पल्टन के साथ संवत् १९३५ में रायपुर ( सी० पी० ) आये । इन दोनों भ्राताओं ने कपड़ा आदि के व्यापार में लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की। सेठ मुलतानमलजी का संवत् १९७१ में स्वर्गवास हुआ । तथा सेठ हीरचंदजी मौजूद हैं। आपका जन्म संवत् १९१९ में हुआ । वर्तमान में मुलतानचंदजी के पुत्र लखमीचन्दजी तथा हीरचंदजी के पुत्र नथमलनी तथा उत्तमचंद तमाम कारवार सझालते हैं आपका जन्म क्रमशः संवत् १९५४ सं० १९५३ तथा १९६० में हुआ। आपकी दुकान रायपुर की प्रधान धनिक फर्म है । आपके यहाँ सराफी, वेडिंग व पुलगांव मिल की एजेंसी का काम होता है। बगड़ी में इस परिवार में एक जैन महावीर पाठशाला खोल रक्खी है। इसमें १२५ छात्र पढ़ते ५३३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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