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________________ चोरड़िया सेठ हीरालालजी-आप सेठ बहादुरमलजीतीसरे भाई और वर्तमान में इस परिवार में सबसे पृद्ध सजन है । आप फर्म के सारे कारबार का संचालन करते हैं। भापके बाबू सौभागमलजी नामक एक पुत्र हैं तथा बाबू सौभागमलजी के जयचन्दलासजी, रतनलालजी भादि पुत्र हैं। आप लोगों का कलकत्ता में “रामपुरिया काटन मिस" नाम से एक प्राइवेट मिल है, जिसमें ८०० लूम्स काम करते हैं। इसके अतिरिक्त भापकी फर्म पर विलायत और जापान के कपड़े का इम्पोर्ट बहुत बड़े परिमाण में होता है। कलकत्ते में भापकी बहुतसी बढ़ी बिल्डिंग्ज किराये के लिये बनी हुई हैं। इसी प्रकार आपकी बीकानेर की हवेलियाँ भी दर्शनीय हैं। सेठ मेघराज तिलोकचन्द रामपुरिया, बीकानेर ऊपर हम सेठ जीवराजजी के ३ पुत्रों में भीवराजजी का नाम लिख चुके हैं। इन भीवराजजी के सेठ पेमराजजी और नेठमलनी नामक दो पुत्र हुए। जेठमलजी के पाँच पुत्रों में से पदमचंदजी भी एक थे। पदमचन्दजी के चुनीलालजी और करनीदानजी नामक दो पुत्र हुए। सेठ चुनीलालजी के कोई संतान नहीं हुई। सेठ करनीदानजी ने बम्बई में अपना व्यापार स्थापित किया था। भापके मेघराजजी नामक एक पुत्र हुए। : सेठ मेघराजजी ने कलकत्ता में आकर नौकरी की । आपके उदयचंदजी और अमोलचंदजी नामक दो पुत्र हुए। अमोलकचंदजी, सेठ लखमीचन्दजी के यहाँ दत्तक चले गये। सेठ उदयचंदजी इस परिवार में विशेष व्यक्ति हैं। आपने अपनी बहुत साधारण स्थिति को बहुत अच्छी स्थिति में रख दिया। प्रारम्भ में मापने कई स्थानों पर साझे में फर्म स्थापित की। अन्त में संवत् १९८७ से आप उपरोक्त नाम से व्यापार कर रहे हैं। आपका ब्यापार शुरू से ही देशी कपड़े का रहा है। इस व्यापार में मापने हजारों रुपये पैदा किये हैं। आपके धार्मिक विचार अच्छे हैं। आपका बीकानेर के मन्दिर सम्प्रदावियों में बहुत अच्छा सम्मान है। आपने कई धार्मिक कार्यों में अच्छी सहायता पहुंचाई है। इस समय भापके मोहनलालजी और जेठमलजी नामक दो पुत्र हैं । बाप लोग भी सजन और मिलनसार हैं। भापका कपड़े का म्यापार इस समय १५० क्रास स्ट्रीट में होता है। सेठ अगरचन्द मानमल चोरडिया, मद्रास इस फर्म के मालिकों का निवास स्थान कुचेरा (जोधपुर-स्टेट) का है। आप स्थानकवासी भानाय को मानने वाले सजन हैं। देश से पैदल मार्ग द्वारा सेठ मगरचन्दजी सन् १८४७ में जालना होते हुए मनास आये। सेठ अगरचन्दजी-आरम्भ में भाप सन् १८४० तक रेजिमेंटल वैकर्स का काम करते रहे। यहाँ केन्यापारिक समाज में एवम् आफीसरों में भाप बड़े भादरणीय समझे जाते थे। मारवादी समाज पर भापकी बढ़ी मदद रहा करती थी। आपके कोई पुत्र न था अतः आपने अपनी मृत्यु के समय अपनी फर्म का उत्तराधिकारी अपने बड़े भ्राता सेठ चतुर्भुजजी के पुत्र सेठ मानमलजी को बनाया मापने ७० हजार रुपयों
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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