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________________ मोसवाल जाति का इतिहास श्री मगनमलजी बांठिया का परिवार, अजमेर इस परिवार के सेठ मगनमलजी ने कई बड़े २ ठिकानों पर मुनीमात की सर्विस की । आपके इस समय चार पुत्र विद्यमान हैं जिनके नाम क्रमश: बा. मानकमलजी, कस्तूरमलजी, कल्याणमलजी और इन्द्रमलजी हैं। ' ' माणकमलजी बांठिया-आपका अध्ययन मेट्रिक तक हुआ। भाप करीव ३० वर्षों से रेल्वे में सर्विस कर रहे हैं। आप मिलनसार सज्जन हैं। ___ कस्तूरमलजी बांठिया-आपका जन्म संवत् १९५१ का है। आपने बी० काम करने के पश्चात् बिड़ला प्रादर्स लिमिटेड कलकत्ता के यहाँ सर्विस की। यहां आपकी होशियारी और बुद्धिमानी से फर्म के मालिक बहुत प्रसन्न रहे। यहां तक कि आपको उन्होंने अपनी लण्डन फर्म दी ईस्ट इण्डिया प्रोड्यूज कम्पनी लिमिटेड के मैनेजर बनाकर भेजे । इस फर्म पर भी आपने बहुत सफलता के साथ काम किया । वहां आप इण्डियन चेम्बर आफ कामर्स के वाइस प्रेसिडेण्ट तथा आर्य भवन के सेक्रेटरी रहे थे। आप विलायत सकुटुम्ब गये थे। आजकल आप अजमेर में बांठिया एण्ड कम्पनी के नाम से बुक सेलिंग का व्यवसाय करते हैं। आपको व्यापारिक विषयों का अच्छा ज्ञान है। आपने इस विषय पर 'बहीखाता' 'मुनीमी' इत्यादि पुस्तकें भी लिखी हैं। आप मिलनसार और सरल व्यक्ति हैं। कल्याणमलजी बांठिया-आप ने बी० एस० सी० तक शिक्षा प्राप्त की । आप कोटे के सेठ समीरमलजी बांठिया के यहां दत्तक चले गये। कोटा स्टेट में आप कई स्थानों पर नाजिम रहे। इस समय भाप इन्द्रगढ़ ठिकाने के कामदार हैं। आपभी मिलनसार और सज्जन व्यक्ति है। - इन्द्रमलजी बांठिया-आप इस समय अपने बड़े भ्राता कस्तूरमलजी के साथ व्यापार में सह. योग प्रदान करते हैं। सेठ बख्तावरमल जीवनमल बांठिया, सुजानगढ़ इस परिवार के लोग बांठड़ी नामक स्थान के निवासी थे। वहाँ से करीब १०० वर्ष पूर्व सुजानगढ़ में आये। इन्हीं में सेठ बींजराजजी हुए। आपने पहले पहले बंगाल में जाकर शेरपुरा (मैमनसिंह) में साधारण दुकानदारी का काम प्रारम्भ किया। पश्चात् सफलता मिलने पर और भी शाखाएं स्थापित की। इन सब फर्मों में आपको अच्छा लाभ रहा। आप तेरापन्थी सम्प्रदाय के अनुयायी थे। आपका स्वर्गवास होगया । आपके रूपचन्दजी, बख्तावरमलजी और हजारीमलजी नामक तीन पुत्र हुए। संवत् १९६४ तक इन सबके शामिल में व्यापार होता रहा पश्चात् फर्म बन्द हो गई और आप लोग अलग अलग स्वतन्त्र रूप से व्यापार करने लगे । रूपचन्दजी का स्वर्गवास होगया हजारीमलजी के कोई पुत्र नहीं है। बख्तावरमलजी का स्वर्गवास भी हो गया। आपके जीवनमलजी नामक एक पुत्र है। बाबू जीवनमलजी-आपने प्रारंभ में कपड़े की दलाली का काम प्रारंभ किया । पश्चात् वेगराजजी चोरडिया विदासर वालों के साझे में कलकत्ता में मोतीलाल सोहनलाल के नाम से व्यापार प्रारम्भ किया। एक वर्ष पश्चात् इसी नाम को बदलकर आपने जीवनमल सोहनलाल कर दिया । सोहनलाल ४९०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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