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________________ उदयपुर मारवाड़ की रंगस्थली में भोसवाल वीरों और राजतीतिज्ञों ने अपने जो अद्भुत् कारनामें दिखकाये हैं और राज्य की रक्षा के लिये अपने प्राणों की बाजी लगाकर, स्वार्थ-त्याग के जिन अपूर्व उदाहरणों को इतिहास में अपनी अमर कीर्ति के रूप में अंकित कर रहे हैं उनका थोड़ा सा परिचय हम ऊपर दे चुके हैं। आगे हम यह बतलाना चाहते हैं कि ओसवाल नर पुंगव ने मारवाड़ की लीला-स्थली के अतिरिक्त और भी राजपूताने की भिन्न २ रियासतों में अपने महान व्यक्तित्व को किस प्रकार प्रदर्शित किया था । अगर हम कहना चाहें तो कह सकते हैं कि मारवाड़ के पश्चात् मेवाड़ ही एक ऐसा प्राँत है जहाँ पर ओसवाल जाति ने अपनी दिव्य सेवाओं का खूब प्रदर्शन किया। स्वाधीनता की लीला स्थली वीर प्रसवा मेवाड़ भूमि .के. इतिहास में ओसवाल जाति के वीरों का नाम भी स्थान २ पर अमर कीर्ति के साथ चमक रहा है। अपने देश और अपने स्वामी के पीछे अपने सर्वस्व को निछावर कर देने वाले त्याग मूर्ति भामाशाह, संघवी दयालदास, मेहता अगरचंद, मेहता सीताराम, इत्यादि महापुरुषों के नाम आज भी मेवाड़ के इतिहास में अपनी स्मृति को ताज़ा कर रहे हैं। अब नीचे बहुत ही संक्षिप्त में हम इन प्रतापी पुरुषों का परिचय पाठकों के सम्मुख रखने की कोशीश कर रहे हैं। महाराणा हमीरसिंह और मेहता जालसी ? चित्तौड़ के प्रसिद्ध महाराणा हमीर ( प्रथम ) उस समय में अवतीर्ण हुए थे जब कि भारत के राजनैतिक गगन-मण्डल में काले बादल मंडरा रहे थे। चारों ओर अशान्ति का दौर दौरा हो रहा था । राजपूताने के बहुत से राज्य मुसलमानों के शासन में चले गये थे। ठीक उसी समय मेवाड़ भूमि भी खिलजी बादशाह अलाउद्दीन द्वारा फतह की जा चुकी थी। चित्तौड़ का प्रथम साका समाप्त हो गया था । इस साके में वीर प्रसवा मेवाड़ - मेवाड़ भूमि के कई नर रत्न अपने अद्भुत पराक्रम और अलौकिक शौर्य का परिचय देते हुए, अपने देश अपनी जाति एवम् अपने कुटुम्ब की रक्षा के लिये, अपने प्राणों की आहुति प्रदान कर चुके थे । केवल केलवाड़े के आस पास के प्रान्त को छोड़कर समूचा मेवाड़ अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता में जा चुका था और वहाँ का शासन सोनगरा मालदेव कर रहा था। मेवाड़ निवासी चारों ओर बिखर रहे थे । संगठन का भयंकर अभाव हो रहा था । को केवल मेवाड़-उद्धार की चिन्ता सताया करती थी । मेवाड़ भूमि किस प्रकार स्वतन्त्र हो, किस प्रकार उसका उद्धार हो । अस्तु । A ऐसी भयंकर परिस्थिति में महाराणा हम्मीरसिंह वे हमेशा इसी विचार में निमग्न रहा करते थे ६८
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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