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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व थी। मारवाड़ के आऊवा नामक स्थान पर विद्रोह हुआ। इस पर मेहता विजयसिंहजी को उक्त स्थान पर चढ़ाई करने के लिए श्री दरवार का हुक्म हुआ। आपने आज्ञा पाते ही आऊवे पर फौजी चढ़ाई कर दी। आपकी सहायता के लिये ब्रिटिश सेना भी आ गई। कहने की आवश्यकता नहीं कि आपने वहां के विद्रोह को दबा दिया और पूर्ण शान्ति स्थापित कर दी। इसके बाद आपने आसोप, आलणियावास गूलर आदि स्थानों पर चढ़ाई कर वहाँ के ठाकुरों को वश में किया। इससे आपकी वीरता की चारों तर्फ बड़ी प्रशंसा होने लगी। ____आप सिर्फ जोधपुर दरबार ही के द्वारा सम्मानित नहीं हुए। राजस्थान के अन्य नरेश भी आपको बहुत मानते थे। सम्बत् १९२० में जयपुर दरबार ने आपको हाथी, सिरोपाव और पार की प्रदान कर आपका बड़ा सन्मान किया। सम्बत् १९२१ में आपकी बहुमूल्य सेवाओं से प्रसन्न होकर श्री जोधपुर दरबार ने आपको नागोर प्रगने का राजोद नामक गाँव जागीर में प्रदान किया । राजस्थान के नृपतियों के अतिरिक्त तत्कालीन कई बड़े २ अंग्रेजों ने आपकी कार्य-कुशलता की बड़ी प्रशंसा की है। जोधपुर के तत्कालीन पोलिटिकल एजण्ट ने आपके लिये लिखा था-"ये एक ऐसे मनुष्य हैं, जिनका निर्भयता से विश्वास किया जा सकता है। मारवाड़ी अफसरों में इनके समान बहुत कम आदमी पाये जाते हैं”। इसके बाद ही ईसवी सन् १८६५ की ४ जून को तत्कालीन पोलिटिकल एजण्ट मि एफ. एफ• निकलसन ने लिखा था 'ये बड़े बुद्धिमान और आदर्श देशी सजन हैं। इन्हें मारवाड़ की पूरी जानकारी है।' मतलब यह कि अपने समय में रायबहादुर मेहता विजयसिंहजी बड़े नामाङ्कित मुत्सद्दी होगये । इनका विस्तृत परिचय आगे चलकर आपके इतिहास में दिया जा रहा है । आगे चलकर महाराजा जसवन्तसिंहजी और महाराजा सरदारसिंहजी के जमाने में भी कुछ अच्छे मुत्सही हुए, जिनका विवेचन यथावसर किया जायगा। इस लेख के पढ़ने से पाठकों को यह भलीभान्ति ज्ञात हुआ होगा कि जोधपुर राज्य के लिये ओसवाल सुत्सहियों ने कितने बड़े २ कार्य किये, राजनीति के मैदान में कितने जबर्दस्त खेल खेले तथा अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिये रण के मैदान में बहादुरी के कितने बड़े २ हाथ बतलाये । मारवाड़ का सच्चा इतिहास इनके महान कार्यों के लिपे सदा श्रद्धाञ्जली अर्पण करता रहेगा। मारवाड़ के इतिहास का कोई अध्याय-कोई पृष्ट-ऐसा नहीं है, जिनमें इनके महान् कार्यों की गौरव गाथा न हो।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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