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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व महाराणा हमीर स्वयं बड़े बीर एवम् पराक्रमी व्यकि थे। उनमें साहस था, वीरता थी और थी कार्य करने की अद्भुत क्षमता। उन्होंने सारे मेवाड़ में ऐलान करवा दिया था कि "जो व्यक्ति अपने सच्चे हृदय से मेवाड़-भूमि का उद्धार करना चाहें, उन्हें चाहिये कि मेवाड़ के ग्रामों को जन शून्य करके केलवाड़ा चले आयें । यदि किसी व्यक्ति ने महाराणा की आज्ञा का उलंघन किया तो शत्रु समक्षा जाकर यमपुर पहुंचा दिया जायगा।" इस वक्तव्य का मेवाड़ के वीर निवासियों पर बहुत प्रभाव पड़ा एवम् वे धीरे धीरे महाराणा के झंडे के नीचे आ खड़े हुए। महाराणा का उत्साह चमक उठा, उन्होंने शीघ्र ही सेना का संगठन करना प्रारम्भ किया। इसी समय चित्तौड़ के शासक मालदेव ने अपनी पुत्री का विवाह महाराणा के साथ करने की प्रार्थना की। कहना न होगा कि महाराणा ने प्रार्थना स्वीकार करकी एवम् उनका मालदेव की पुत्री के साथ विवाह होगया। कर्नल टाड साहब का कथन है कि "अपनी नव विवाहिता पलि के कहने से महाराणा ने दहेज में जालसी मेहता को माँग लिया। ये जालसी मेहता बड़े बुद्धिमान एवम् राजनीतिज्ञ पुरुष थे।" ये ओसवाल जाति के भणसाली गौत्रिय सज्जन थे। जब वीरता एवम् पराक्रम के साथ राजनीति एवम् बुद्धिमानी का सहयोग हो जाता है तष विजयलक्ष्मी हाथ जोड़े हुए सामने खड़ी रहती है। यहाँ भी यही हुआ। . ___एक समय का प्रसंग है कि महाराणा हमीर के पुत्र लक्षसिंह को, जो आगे चल कर महाराणा लाखा के नाम से प्रसिद्ध हुए, चित्तौड़ के देवी-देवताओं की अप्रसन्नता को मिटाने के लिये पूजा करने चित्तौड़ जाना पड़ा। कहना न होगा कि इस अवसर पर चतुर जालसी मेहता भी साथ गये। चित्तौड़ जाकर मेहता जालसी ने धीरे धीरे वहाँ के सरदारों को मालदेव के खिलाफ उभारना प्रारम्भ किया । जब उसे विश्वास हो गया कि हमारे पक्ष में बहुत से सरदार हो गये हैं तब उसने महाराणा को खानगी तौर पर चित्तौड़ आने के लिये लिख भेजा। कहना न होगा कि ठीक भवसर पर महाराणा चित्तौड़ पहुँचे। युक्ति और योजनानुसार उन्हें चित्तौड़ का दरवाजा खुला मिला । फिर क्या था, बात की बात में तलवारें चमकने लगीं। घनघोर युद्ध प्रारम्भ हो गया। चारों ओर भयंकर मारकाट मच गई। अंत में विजय श्री महाराणा के हाथ लगी। चित्तौड़ के वारतविक अधिकारी का उस पर अधिकार हो गया। . प्रसिद्ध इतिहास वेत्ता महा महोपाध्याय पं. गौरीशंकरनी ओझा अपने राजपूताने के इतिहास में लिखते हैं कि "चित्तौड़ का राज्य प्राप्त करने में हमीर को जाल (जालसी) मेहता से बड़ी सहायता मिली। जिसके उपलक्ष्य में उसने उसे अच्छी जागीर दी और प्रतिष्ठा षदाई ।"
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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