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________________ ओसवाल जाति का इतिहास "अखेचन्दजी का सामर्थ्यं बहुत बढ़ा हुआ था। दरबार को वे ही वे दीखते थे। रियासत में एक समय ये बहुत प्रबल थे 1 आपकी इन सब सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराजा मानसिंहजी ने आपको संवत् १८६६ में पालकी, सिरोपाव व एक खास रक्ता इनायत कर आपकी प्रतिष्ठा को खूब बढ़ाया था" । रावराजा रिघमलजी - आर रावराजा शाहमलजी के पुत्र थे। महाराजा मानसिंहजी के समय में आप जोधपुर राज्य के फौज बख्शी हुए । सम्वत् १८८९ में आप और मुणोत रामदासजी १५०० सवारों को लेकर अजमेर में ब्रिटिश सेना की सहायता करने गये थे । सं० १८९८ में इन्हें १६ हजार की जागीरी दी गई। इसके थोड़े ही दिनों बाद आप जोधपुर राज्य के मुसाहिब बनाये गये । महाराजा मानसिंहजी इनका बड़ा सम्मान करते थे । इन्होंने महाराजा से प्रार्थना कर ओसवाल समाज पर लगने वाले सरकारी कर को माफ़ करवाया था। आपने बहुत प्रयत्न करके पुष्करराज के कसाई खाने को बन्द करवाय जिसके लिये अब भी यह कहावत मशहूर है - "राव मिटायो रिधमल, पुष्कर रो प्रायश्चित ।” सम्वत् १८९६ में इन्होंने जागीरदारों और जोधपुर दरबार के बीच कुछ शर्तें तय की जिनका व्यवहार अब तक हो रहा 1 महाराजा मानसिंहजी के पुत्र बाल्यकाल ही में गुजर गये थे और उनके दूसरी सन्तान न थी । अतएव राज्य गद्दी के लिये वारिस गोद लाने का विचार होने लगा । इस कार्य में रावराजा रिधमलजी ने बड़ी दिलचस्पी ली और महाराजा तख्तसिंहजी को गोद लाने में आपका खास हाथ था । महाराजा मानसिंहजी के समय में और भी कई ओसवाल मुत्सद्दियों ने बड़े २ काम किये उन सब का विस्तृत विवरण अगले अध्यायों में कौटुम्बिक इतिहास, ( Family History) में दिया जायगा । इसके आगे चलकर महाराजा तख्तसिंहजी और महाराजा जसवन्तसिंहजी के जमाने में भी कुछ भोसवाल सज्जनों ने दीवानगिरी और फौज की बक्शीगिरी आदि बड़े २ ओहदों पर बड़ी सफलता के साथ कार्य किया । इन महानुभावों में मेहता विजयसिंहजी और सींघी बछराजजी का नाम विशेष उल्लेखनीय है । मेहता विजयसिंहजी राजनीतिज्ञ और वीर थे। आपने कई छोटी-बड़ी लडाइयों में हिस्सा लिया । सुप्रसिद्ध डूंगर सिंह, जवाहरसिंह को दबाने में आपका प्रधान हाथ था । इस सम्बन्ध में श्री दरबार ने और तत्कालीन ए० जी० जी० महोदय ने अपने पत्रों में आपकी बड़ी प्रशंसा की है। सम्वत् १९१४ ( ईसवी सन् १८५७ ) के बलवे का हाल हमारे पाठक भली प्रकार जानते होंगे । इस समय भारत में चारों ओर विद्रोहाग्नि फैल रही थी । मारवाड़ में भी कई जगह यह आग जल रही ६६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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