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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व का घेरा देने में शामिल थे, महाराजा मानसिंहजी से जोधपुर चलकर राज्यासन पर विराजने की प्रार्थना की । तदनुसार मार्गशीर्ष बदी • को जब महाराजा मानसिंहजी किले पर दाखिल हुए तब मेहताअखेचन्दजी भी उनके साथ थे। इसी साल माघ सुदी ५ के दिन जब महाराजा का राजतिलक हुआ तब उन्होंने मेहता अखेचन्द जी को मोतियों की कंठी, कड़ा, सिरपंच, मन्दील आदि का सिरोपाव तथा ३५००) की रेख का नीमली नामक गाँव उनके नाम पर पट्टे कर उनका सम्मान किया। साथ ही इसी वर्षमालाई नाम का एक और गाँव आपको जागीर में दिया गया। __ जब जयपुर और बीकानेर की फौजों ने जोधपुर को घेर लिया और महाराजा मानसिंहजी का अधिः कार केवल किले मात्र में रह गया, उस समय मेहता अखेचन्दजी ने महाराजा की बड़ी आर्थिक सेवा की : घेरा उठ जाने के बाद महाराजा मानसिंहजी ने मेहता अखेचन्दजी को जो खास रुका दिया, उसमें लिखा है "मुहता अस्वेचन्द कस्य सुप्रसाद बांचजो तथा थारी बंदगी भागे जालौर दोनों घेरा री तो छ ही ने अबार इण घेरा में ही बंदगी कीबी सो आच्छी रीत मालूम है । ने रुपया ४०००००) चार लाख आसरे सरकार में आया सो दिरीज जावसी तू जमा खातर राखे सदा शुभ रष्टि है जिणसू सिवाय रहसी संवत् TREATEHTAR १८६४ रा आसोज वदी ९" इसके पश्चात जब अमीरखाँ को २ लाख रुपये देने की आवश्यकता हुई तब महाराजा मानसिंहजी ने इन्हें उक्त रुपयों की व्यवस्था करने के लिये निम्न लिखित पंक्तियाँ लिखीं थीं। __ "अबार दोय लाख भमीरखां ने फौज अटकीजी जो आवा सो अवार को काम थाने किये चाहिजेला आ बन्दमी आद अंत ताई भूलसा नहीं सं० १८६४ आसोज वदी १३”.... ': इसी प्रकार अमीरखाँ को पुना रुपया चुकाने की आवश्नसा पड़ने पर महाराजा मानसिंहजी ने मेहता अखेरानजी को एक बार फिर लिखा था जिसकी नकल नीचे दी जाती है।.. ... .. "हर हुनर कर दोय लाख रो समाधान करणों ये काम छाती चादने कीजे तो श्रीनाथजी अवार' ही सहाय करी इसो व्येत छे जू जालौर ढाबियाँ री जू आ जोधपुर ढाबियारी सिरारी बन्दगी छे...इत्यादि"। कहने का मतलब यह है कि मेहता अखेचन्दजी ने मारवाड़ राज्य की तन, मन, धन से सहायता पहुंचा कर उसकी बहुमूल्य सेवाएं की हैं । मारवाड़ के महाराजा आपकी महत्व के कामों में सलाह लिया करते थे। राजपुताने के सुप्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार कर्नल जैम्स टॉड ने आपके विषय में अपने मारवाड़ के इतिहास में निम्न आशय के वाक्य लिखे थे।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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