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________________ विज्ञान, रसायन आदि भिन्न-भिन्न काल में भिन्न-भिन्न विद्वानों के उद्गार भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से हैं परन्तु धर्मशास्त्र की मर्यादा एक है। देशकाल भेद से जो तारतम्य होता है उसका स्पष्टीकरण वहीं किया गया है। स्मृतिग्रन्थों में सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुग इन चार युगों में तपस्या, ज्ञान, यज्ञ और दान इनको युग के अनुरूप प्राथमिकता दी गई है। इससे यह अर्थ न समझना कि सत्ययुग में दान नहीं था और कलियुग में तप नहीं है। सब युगों में तप, यज्ञ ज्ञान और दान की महिमा है केवल किस युग में किस धर्म की प्रधानता है यह इसका तात्पर्य है। धर्मशास्त्रों में विधि वाक्य, नियम वाक्य, परिसंख्या और अर्थवाद वाक्यों की परिभाषा की जानकारी कर तब ठीक-ठीक तात्पर्य बुद्धि में आवेगा, अन्यथा कहीं विरोधाभास प्रतीत होने से भ्रम हो जाएगा। विधि वाक्य और नियम वाक्यों में जो बताया गया है उसका पालन न करने से शास्त्रीय दण्ड या प्रायश्चित का भागी होता है । स्मति ग्रन्थों का मौलिक रचनाक्रम और धर्मशास्त्रीय व्यवस्था संस्कार परिज्ञान धर्मपूर्वक व्यवहार शासक के गुण प्रायः सब स्मतियों में समान ही हैं। परन्तु किसी स्मतिकार ने किसी बात को अधिक महत्व दिया है। __ सृष्टिरचनाक्रम वर्णन करके मनु ने आचार संस्कार का वर्णन किया है। उन्होंने जिन आचार व्यवहारों का वर्णन अपनी स्मृति में बताया है उसके लिए कहा गया है 'यह सब वेद वाक्य है' यथा 'यन्मनुरवदत्तभेषजं भेषजानाम् । मनुस्मृति के द्वितीय अध्याय में आया है यः कश्चित्कस्यचिद्धर्मो मनना सन्प्रकोत्तितः। स सर्वो विहितो वेदे सर्वज्ञानमयो हि सः॥ मनुस्मृति में धर्म बताया गया है वह सब वेदों में हैं। यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि महर्षि मनु के ये विचार हैं जिन्हें महर्षि भृगुजी ने निबन्धीकृत किया है । मनु को सम्पूर्ण ज्ञान-निष्ठा थी। मनु ने गर्भाधान संस्कार से विवाह संस्कार तक को धर्म बताया है । तृतीय अध्याय में कहा गया है कुविवाहैः क्रियालोपैःधर्मस्यातिक्रमेण च । कुलान्यकुलतां यान्ति ब्राह्मणातिक्रमेण च ॥
SR No.032667
Book TitleSmruti Sandarbh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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