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________________ मनुष्य का पतन होता है। जैसे--ऋतौभार्यामपेयात् । __ ऋतु काल में सन्तान जननेच्छया स्त्रीसमागम शास्त्रसम्मत है, तद्विपरीत निषिद्ध है। कामी बनने से आयु क्षय और मनुष्य का नैतिक पतन होता ही है। ___ अब विचार इस बात का कर्तव्यरूप में आ जाता है कि कौनकोन कर्म हैं जिनका कर्तव्य कर्म में विधान है। वह कौन कर्म हैं जो त्याज्य हैं, इन्द्रियों का भोग कहां तक सीमित हैं, इन सब का ज्ञान स्मृति ग्रन्थों से ही होगा । अपनी कल्पना और अपने अनुमान से विहित और त्याज्य कर्मों का निश्चय करना न केवल उपहास्य है अपितु विश्ववन्द्य और विश्वमान्य गीता का अपमान करना है। भगवद्गीता में सर्वशास्त्रपारंगत नीतिव्यवहारकुशल अर्जुन को अनुशासनात्मक उपदेश दिया गया कि "तस्माच्छास्त्रं प्रमाणन्ते कार्याकार्य व्यवस्थितौ" कौन-कौन कर्म करने के योग्य हैं और कौन-कौन त्याज्य हैं इसका निर्णय एकमात्र शास्त्र से ही होगा । अपनी बुद्धि से कर्तव्य अकर्तव्य का निर्णय कर उस पर आरूढ़ होना अपने को गिराना है । कर्तव्य (विहित कर्म) और त्याज्य (छोड़ने योग्य) कर्मों का निर्णय स्मृति ग्रन्थों से ही जाना जा सकता है। स्मृतिग्रन्थ बहुत हैं । व्यास सूत्र उत्तर मीमांसा "स्मर्यते च” इस सूत्र के भाष्य में महाभारत आदि को भी स्मृति बताया है। याज्ञवल्क्य स्मृति में-- "मन्वत्रिविष्णुहारीतयाज्ञवल्क्योशनोऽङ्गिराः। यमापस्तम्बसम्वर्ताः कात्यायनबहस्पतिः ॥ पराशरव्यासशङ्कलिखिताः दक्षगौतमौ । शातातपो वशिष्ठश्च धर्मशास्त्रप्रयोजकाः॥" स्मृतिग्रन्थ और भी हैं किन्तु धर्मशास्त्रीय-व्यवस्था के प्रयोजक मनु से वशिष्ठ तक हैं जिनके नाम उक्त श्लोकों में हैं । उक्त धर्मशास्त्रीय स्मतियों के अनुरूप परिषद व्यवस्था देने की अधिकारिणी होती है। उच्च धर्मशास्त्रों में प्रायः धर्मनिर्णय की शैली एक ही है। कुछ गवेषकों का मत है कि स्मृतियां भिन्न-भिन्न काल में विभिन्न दृष्टिकोण से लिखी गई हैं यह गवेषणा सर्वथा सत्य नहीं है । ऋषि मुनियों के अतिरिक्त कोई प्रगाढ़ पाण्डित्यवादी भी धर्मशास्त्रप्रयोजक (व्यवस्था देने वाला) नहीं हो सकता है। काव्य, दर्शन, इतिहास,
SR No.032667
Book TitleSmruti Sandarbh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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