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________________ अयोध्या का इतिहास। शस्त्रधारी और लोक रक्षा मे दक्ष ऐसे क्षत्रियों को धर्मतत्व और क्रिया में निष्ट ब्रह्मचर्ययुक्त ऐसे ब्राह्मणों को कृषी वाणिज्य और गोपालन करने वाले ऐले वैश्यों को और अन्य सर्व प्रकार का काम करने वाले ऐसे शूद्रों के लिये चातुर्वर्ण की व्यवस्था कर श्री जैन आर्य संस्कृति का प्रवाह चालू किया पूर्व के महा पुण्य योग से अपने को अजोड जैन शासनकी प्राप्ती हुई है बोभी अपने अहो भाग्य ! जगत पिता किंवा जगतगुरु श्रीजीनेश्वर भगवान् ऋषभदेवजी का जन्म अयोध्या में हुआ इस पवित्र भूमि में भगवान् ने दिक्षालिया। इन्द्र और देवताओं ने समवसरण - को रचना की शासन नायक श्रीआदिश्वरे शासन व्यवस्था के लिये चतुर्विध संघकी ८४ चौरासी गणधरकी दुनिया के आगे दृष्टांत दिखाने के खातिर शासन प्रणाली की जड़ कायम करने के लिये अपने १०० वोर पुत्र में से ज्येष्ट पुत्र परम प्रिय भरतेश्वरजी को विनीता नगरी का प्रधीष्टाता स्थापी मार्यावर्त के चक्रवर्ती सम्राट को गद्दी देकर बाकी १९ पुत्रो को मायर्यावर्त मन्तरर्गत अलग २ प्रान्त राज्य कायम कर कारोबार सौंप दिया और भरतजी के पुत्र पुण्डरीकजी को प्रथम गणधर की पदवी देकर सम्मानित किया। भगवान् विहार करते एक समय फिर विनीता नगरी
SR No.032642
Book TitleAyodhya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeshtaram Dalsukhram Munim
PublisherJeshtaram Dalsukhram Munim
Publication Year1938
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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