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________________ ५ - जब साधु को दीक्षा दी जाती है तब नांद ( तीगड़े पर प्रभु प्रतिमा स्थापित करना ) मांड कर विधि-विधान यानि तीन प्रदक्षिणा के साथ तीन बार जावजीव के लिये करेमिभंते सामायियं उच्चराई जाती है पर खरतरों ने श्रावक के इतर काल की सामायिक को भी तीन बार उच्चारने की उत्सूत्र प्ररूपना कर डाली। ६-जैनागमों का फरमान है कि श्रावक सामायिक करे तो पहले क्षेत्र शुद्धि के लिये इरियावही करके ही सामायिक करे पर खरतरों ने पहले सामायिक दंडक उच्चरना बाद में इरियावही करने की उत्सत्र प्ररूपना कर डाली। ७-जैनागमों में साधु के लिये नौकल्पी विहार का अधिकार है खरतरों ने उसका भी निषेध कर दिया । इत्यादि वीतराग की आज्ञा का भंग कर कई प्रकार की उत्सूत्र प्ररूपना कर डाली जिसको सब गच्छों वालों ने उत्सूत्र प्ररूपना मानी है इतना ही क्यों पर भगवान महावीर के गर्भापहार नामक छट्ठा कल्याणक की उत्सूत्र प्ररूपना के कारण जिनवल्लभसूरि को तथा स्त्री जिनपूजा निषेध के कारण जिनदत्तसूरि को श्रीसंघ ने संघषाहर भी कर दिया था पर कहा जाता है कि 'हारिया जुवारी दूणों खेले' इस लोकोक्ति को चरितार्थ करते हुए उन्होंने और भी कई मिथ्या प्ररूपना करदी तथा आधुनिक खरतरों ने खरतरमत की उत्पत्ति का आदि पुरुष जिनेश्वरसूरि को बतलाने के लिये एक कल्पना का कलेवर तैयार किया है कि वि० सं० १०८० में जिनेश्वरसूरि पाटण गयेथे वहां राजा दुर्लभ की राज-सभा में चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ किया जिसमें जिनेश्वरसूरि खरा रहा जिससे । राजा दुर्लभ ने उनको खरतर विरुद दिया और हार जाने वाले को
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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