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________________ ( २ ) -भगवान महावीर के पांच कल्याणक हुए ऐसे मूलसूत्र टीका वगैरह में उल्लेख मिलते हैं और उसको आचार्य अभयदेवसूरि तक सब जैनसमाज मानता भी आया था पर जिनबल्लभसूरि जो कुर्चपुरागच्छीय चैत्यवासी जिनेश्वरसूरि का शिष्य था उसने वि० सं. ११६४ आश्विनकृष्णात्रयोदशी के दिन चित्तौड़ के किल्ले पर भगवान महावीर के गर्भापहार नामक छट्ठा कल्याणक की उत्सूत्र प्ररूपना करके अपना 'विधिमार्ग' नामक एक नया मत निकाला। - २-जैनधर्म में जैसे पुरुषों को जिनपूजा करने का अधिकार है वैसा ही स्त्रियों को जिनपूजा कर आत्म कल्याण करने का अधिकार है पर जिनवल्लभसरि के पट्टधर जिनदत्तसूरि ने वि० सं० १२०४ पाटणनगर में स्त्रियों को जिनपूजा करना निषेध कर उत्सूत्र की प्ररूपना की और जिनदत्तसरि की प्रकृति से जिनवल्लभसरि के 'विधिमार्ग' का नाम खरतरमत हुआ। ३-श्रावक पर्व के दिन तथा पर्व के अलावा जब कभी अवकाश मिले उसी दिन पौषध व्रत कर सकता है और भगवती सूत्र में राजा उदाई तथा विपाक सूत्र में सुबाहुकुमार ने पर्व के अलावा दिनों में भी पौषधव्रत किया था पर खरतरों ने मिथ्यात्वोदय के कारण पर्व के अलावा दिनों में पौषध करना निषेध करके उत्सूत्र की प्ररूपना कर डाली एवं अन्तराय कोपार्जन किया । ४-श्रावक जैसे तिविहार उपवास कर पौषध करता है वैसे एकासना करके भी पौषध कर सकता है और भगवतीसूत्र में पोक्खली आदि बहुत श्रावकों ने इस प्रकार पौषध किया भी था पर खरतरों ने एकासना एवं प्रांबिल वाले को पौषध व्रत करने का निषेध करके उत्सूत्र की प्ररूपना कर डाली।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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