SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६ ) और पालि को अपनाया । यह याद रहे कि महावीर और बुद्ध भी राजकुलोत्पन्न थे । पर ये अभिजातकुलीय उपनिषद् के जानपद राजात्रों की भाँति संस्कृत में अपने प्रवचन नहीं करते । बल्कि इस काल के ग्रान्दोलन. के नेता - महावीर और बुद्ध - सामान्य जनता की भाषा में अपना निर्देश करते हैं । इन दोनों नेताओं ने समझा कि श्रान्दोलन की प्रेरणा में शब्द सहायक होता है और शब्द ऐसा नहीं कि वह प्रवचन रूप में पूज्य मात्र रहे, वरन् ऐसा कि वह जिनसे कहा जाय, उनके द्वारा समझा जाय और उनको आगे आने के लिये, विकसित होने के लिये प्रेरित करे । जनभाषा -- प्राकृत और पालि - स्वाभाविक ही जनान्दोलन की वाणी बनी । पर यहाँ भी जैनों और बौद्धों का एक फरक है – एक अन्तर है । पालि उस काल के मध्यदेश की शिष्ट भाषा है— लोक प्रचलित ज़बान है; जब कि प्राकृत मगध के निम्नवर्ग, निम्नतम वर्ग की भाषा थी, जिसका शिष्ट प्राकृत के रूप में विकास प्रथम शती में हुआ । पालि का संस्कृत से थोड़ा ही भेद था, जब कि प्राकृत मगही से ज्यादा नजदीक और संस्कृत से थोड़ी दूर थी । उस काल की मागधी प्राकृत का ठीक ठीक रूप अब नहीं मिलता । पर भाषा शास्त्री विद्वानों का मत है कि उस काल की मागधी का प्रभाव मगध से पच्छिम मिर्जापुर जिले के पूर्वी हिस्से और उन्नाव जिले तक था । इसी कारण इधर की भाषा का नाम अर्धमागधी पड़ा। पूरब में मागधी का प्रभाव बंगाल और उड़ीसा तक था । इसी मागधी प्राकृत से आज की अनेक भाषात्रों का जन्म हुआ । ब्रात्यों का तीर्थ मगध जैन और बौद्धों के कारण ही राजगृह तीर्थस्थान बन गया । तीर्थंकर महावीर ने विपुलाचल पर्वत पर निवास किया था और यहीं श्रेणिक बिम्बिसार को उपदेश दिया था । स्वर्णाचल ( सोनगिरिं ), रत्नाचल, वैभार और उदयगिरि में भी जैन धर्म की प्राचीन कीतियों के अनेक +
SR No.032629
Book TitleMagadh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaijnath Sinh
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy