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________________ नहीं हूं । अभयने कहा : यही सच्चा धर्मी हैं । * जैसी करुणा भावना तीर्थंकर भा सकते हैं वैसी दसरे कोई नहीं भा सकते । तीर्थंकरमें यह विशेषता हैं : वे सर्व जीवों में आत्मभाव देखते हैं । ऐसे करुणाशील भगवानकी करुणा रही या गई ? हेमचंद्रसूरिजी कहते हैं : भगवानमें इतनी करुणा हैं कि जिसके सामने स्वयंभूरमण भी छोटा पड़े । उस करुणाकी वृष्टि आज भी हो रही हैं । * मेरा योग-क्षेम भगवान कर रहे हैं । ऐसा विचार हमें कैसा गद्गद् बनाता हैं ? एक बड़े मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की दोस्ती भी आदमीमें खुमारी भर देती हैं, तो भगवानका संपर्क आपके अंदर कैसी मस्ती भर देता हैं । भगवानकी करुणा आपको दुःखमें आश्वासन देती हैं । प्रश्न होगा : करुणाशील भगवानने श्रेणिक जेलमें थे तब क्यों कुछ नहीं किया ? भगवानने उस समय भी श्रेणिककी रक्षा की ही हैं, दुःखमें श्रेणिकको धीरज और आश्वासन देनेवाले भगवान ही थे । भगवान दुःख दूर नहीं करते, दुःखमें समाधिकी शक्ति देते हैं, रोगमें योगकी शक्ति देते हैं, व्याधिमें समाधि देते हैं । यही भगवानकी कृपा हैं । बीजाधानवाले जीवोंका भगवान इस तरह (सद्विचार देकर) योग-क्षेम करते ही हैं। मात्र उसे देखने की आंख हमारे पास चाहिए । * महानिशीथमें खुलासा किया हैं : उधई खाई हुई एक ही महानिशीथकी प्रत मिली हैं, उसी तरह हमने लिखा हैं उससे कोई भी व्युद्ग्राहित न हों । . ध्यान-विचार की भी इसी प्रकार एक ही प्रत पाटण के भंडारमें से अमृतलाल कालिदास दोसीको मिली थी । * बीजाधान करना हो तो पाप-प्रतिघात करना जरुरी हैं । पाप-प्रतिघात किये बिना बीजाधान कैसे हो सकता हैं ? बीजाधानके बिना चाहे जितने आगे पहुंच गये हो (जैनाचार्य बनकर नवग्रैवेयक तक) तो भी व्यर्थ हैं । कहे कलापूर्णसूरि - ४Boooooooooooooooom ६५)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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