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________________ हैं । निंदा कौन से दरवाजे से आ जाये, उसका पता भी नहीं चलता । मर जाना, परंतु किसी की निंदा मत करना । निंदा करना याने दूसरे की जीते जी मृत्यु करना । इतने बरसों तक पू.पं. भद्रंकर वि.म.के पास रहे हैं, किंतु उनके मुंहसे कभी किसी की निंदा नहीं सुनी । ज्ञानी की जांच क्रियासे होती हैं । ज्ञान ज्यादा तो क्रिया ज्यादा । 'हेम परीक्षा जिम हुएजी, सहत हुताशन ताप; ज्ञान दशा तिम परखीएजी, जिहां बहु किरिया व्याप ।' - पू. उपा. यशोविजयजी ज्ञान अमृत हैं । क्रिया फल हैं । इन दोनों से ही सच्ची तृप्ति होती हैं । ज्ञानी अलिप्त होते हैं, लेकिन ज्ञानी कौन ? तीन गुप्तिसे गुप्त ज्ञानी हैं । एक भी गुप्ति से गुप्त नहीं वह सच्चा ज्ञानी नहीं । वहां तक ऐसा अधिकार नहीं हैं । फिर भी अभ्यास करनेका सबका अधिकार हैं । जैसे कि परसौं यशोविजयसूरिजीने गुप्तिकी बात की थी । पांच समिति के पालनमें तत्पर बनने के बाद गुप्तिमें जा सकते अगर हम संकल्प करें तो समिति का पालन सरल हैं । चलते समय नीचे देखकर चलो, तो इर्यासमिति आ जायेगी । बोलते समय हित-मित-पथ्य-प्रिय जरुरी बोलो तो भाषासमिति आ जायेगी । गोचरी करते हो तब बोलने की जरुर कब पड़ती हैं ? जरुर पड़े तब ही बोलते हो न ? बिनजरुरी नहीं बोलते हो न ? भाषासमितिसे ही वचन-गुप्तिमें जा सकेंगे । पू. भाग्येशविजयजी : गुप्ति उत्सर्ग हैं । समिति अपवाद हैं । पहले उत्सर्ग नहीं होता ? पूज्यश्री : अपवाद-उत्सर्ग की बात बादमें करना । अभी मुझे वर्णन करने दो । विषयांतर हो जायेगा । ४२ दोष टालकर गोचरी लें तो एषणासमिति आयेगी । ऐसा [४२ &000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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