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________________ पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : इसमें भी मारवाड़ी ? पूज्यश्री : इस अर्थमें जरुर कह सकते हो । मारवाड़ी उदार भी होते हैं, यह याद रखना । मद्रासमें २० करोड़की आय कर देनेवाले मारवाड़ी थे । मारवाड़में छोटी मारवाड़ के ज्यादा उदार । हम बडी मारवाड़ के । वहां इतनी उदारता नहीं हैं । सम्यक्त्व मोहनीयके पुद्गल के प्रभावसे प्रभुदर्शन के कारण अंदर आनंद होता हैं । आठों कर्मों का उदय द्रव्य-क्षेत्रादिकी अपेक्षासे होता हैं । उदा. ब्राह्मी औषधिसे ज्ञानकी वृद्धि होती हैं । भैंसका दहीं बगैरहसे बुद्धि जड़ बनती हैं । I ये पुद्गल भी ज्ञानावरणीय कर्म तोड़ने में सहायक होते हैं । जैसे सम्यक्त्व मोहनीय के पुद्गल प्रभुदर्शन से होते आनंदमें सहायक बनते हैं प्रतिमाके शांत परमाणुके आलंबनसे हमारे भीतर शांत आंदोलन उत्पन्न होते हैं । चलने पर भी पहुंचना चाहिए वहां पहुंचते नहीं उसका कारण निश्चय-व्यवहार का सम्यग् आलंबन नहीं लेते, वह हैं । अभी हम निश्चय बिलकुल भूल गये हैं । 'मैं शुद्धात्मा हूं ।' ऐसी विचारधारामें हमें मिथ्यात्व दिखता हैं, किंतु शरीर में ही आत्मबुद्धि हैं, उसमें मिथ्यात्व नहीं दिखता हैं । ज्ञानसार यों ही नहीं बनाया गया । ‘एगो मे सासओ अप्पा ।' यह श्लोक यों ही नहीं बनाया । संथारा पोरसीमें रोज निश्चय याद किया जाता हैं, किंतु याद करे ही कौन ? * * नींदमें अकेले-अकेले संथारा पोरसी पढानेवाले सुन ले कि स्वातंत्र्य ही मोहका - पारतंत्र्य हैं । गुरुका पारतंत्र्य ही सच्चा स्वातंत्र्य हैं । किसी की भूल कभी जाहिरमें नहीं कही जाती, एकांतमें ही कही जाती हैं । किसीकी टीका करने से पहले विचारीये । जाहिरमें बोलेंगे तो सामनेवाले के हृदयमें आपके प्रति आदर ही नहीं रहेगा । आदर ही नहीं रहेगा तो आपका मानेगा कैसे ? भूल नीकालने के नाम पर निंदामें चला जाना बहुत सरल कहे कलापूर्णसूरि ४ wwwwwwwwww ० ४१
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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