SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छोटी-छोटी चीजें परठवते समय आत्मोपयोगमें रहना वह पारिष्ठापनिकासमिति । समिति - गुप्ति याने आत्मोपयोगमें ठहरने का स्थान । विमुक्तकल्पनाजालं * काय - वचनगुप्ति सरल हैं । क्योंकि कंपन के बिना प्रयत्न करें तो बैठ सकते हैं । आवश्यक निर्युक्तिमें 'ठिओ, निसन्नो, सुत्तो वा ।' तीनों तरह काउसग्ग हो सकता हैं, ऐसा लिखा हैं । * विज्ञान जैन सिद्धांत के पीछे दौड़ रहा हैं । विज्ञान छोटा भाई हैं, जैन सिद्धांत बड़ा भाई हैं । कायगुप्ति और वाग्गुप्ति भी सरल हैं । आज मौन थे न ? साधना के ०॥ घण्टे पहले मौन रखना । एक साधकने कहा : ०॥ घण्टा पहले मौन रखना । बातें करके आयेंगे तो आपका मन १५-२० मिनिट तक कोमेन्ट करता ही रहेगा । प्रतिक्रमण भी इसी तरह किजिए । १-२ माला गिनकर प्रतिक्रमण करो । मनोगुप्ति कठिन हैं । विचारों की जाल को एक तरफ रख देना । मनको दो ही दिशाओं की जानकारी हैं : विचार अथवा निद्रा । तीसरी अवस्था का अब अनुभव करना हैं । ज्ञानसार में कहा हैं, आपकी कही जाती जागृति और निद्रामें कोई फर्क नहीं हैं । दोनोंमें विचार हैं ही । विचार के कदम की शोध करो । पदचिह्नज्ञाता क्या करता है ? मैंने ऐसे पदचिह्नज्ञ देखे हैं जो वृक्ष परसे कठिन भूमिमें जाते चोरका कदम पहचान ले । शुभका एतराज नहीं । अशुभ विचार नहीं चाहिए । मंदिरमें अमृतरूप प्रभु के पास भी एक व्यक्ति की वजह से विचार बदल जाता हैं, ऐसा बनता हैं । 'आतमज्ञाने मन-वचन-काय रति छोड; तो प्रगटे शुभ वासना, धरे गुण अनुभवकी जोड; ' २८ ००० समाधिशतक क कलापूर्णसूरि- ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy