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________________ अपने ससरे - साले एवं पुत्र मुनिओं के साथ, वि.सं. २०१६, आधोई - कच्छ - १७-९-२०००, रविवार अश्विन-कृष्णा ४ सात चोवीसी धर्मशाला, पालीताना (८) पुरिसवरपुंडरीयाणं । भगवान के अचिन्त्य सामर्थ्य से ही हमको ऐसी सामग्री मिली है, प्रभु-शासन मिला है, थोड़ी भी धर्म श्रद्धा मिली है । 'चत्तारि परमंगाणि' ___- उत्तराध्ययन ४/१ कोई पूर्वजन्म के पुण्योदय से ही इन चार वस्तुओं (मानव भव, धर्म-श्रवण, धर्म-श्रद्धा, धर्माचरण) तक हम पहुंच सके हैं, अगर पहुंचे नहीं हों तो पहुंच सकते हैं । अभी हमारे लिए मुक्ति कितनी दूर ? लगभग किनारे तक पहुंच गए हैं । १५ दुर्लभ वस्तुओं में मात्र तीन की ही त्रुटी है, क्षपकश्रेणि, केवलज्ञान और मोक्ष ! चिन्तामणि रत्न के लिए कोई व्यक्ति जिंदगीभर भटकता रहे और किसी चरवाहे के हाथ में वह व्यक्ति चिन्तामणि रत्न देखें, तो कैसा लगे ? चिन्तामणि जैसा धर्म हमारे हाथ में है। लेकिन हम चरवाहे तो नहीं है न...? कहे कलापूर्णसूरि - ४ o Sanon १)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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