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________________ पूज्यश्री १२ नवकार गिनने की उद्घोषणा अवश्य करते और उस समय उपस्थित सब मैत्रीभाव के मण्डप के नीचे बारह नवकार गिनने लग जाते । मैत्रीभाव से वासित हृदय से गिने जाते इन श्री नवकार महामन्त्र के प्रभाव से ही सम्पूर्ण चातुर्मास एकता एवं एकसंपितामय व्यतीत हुआ, ऐसा प्रमाण युक्त अनुमान लगाया जा सकता है । श्री नमस्कार महामंत्र के प्रति पूज्यश्री का विशेष लगाव बना रहता है, जिसका उदाहरण ये है कि पूज्यश्री के वासक्षेप के लिए लम्बी कतार के रूप में जनता उमड़ पडती है परन्तु पूज्यश्री ने नियम बना लिया हैं कि, 'जो नित्य पांच बंधी नवकारवाली गिनेंगे उन्हें ही वासक्षेप डालेंगे', अतः श्री नवकार का जाप करनेवाला अत्यन्त बड़ा वर्ग तैयार हो गया है। विश्वशान्ति के लिए यह कितना बड़ा परिबल गिना जा सके ! और श्री नमस्कार महामंत्र से सम्बन्धित वाचना में भी जब-तब आलम्बन एवं प्रेरक उपदेश देते देखा है। सामाचारी के सम्बन्ध में भी पूज्यश्री को जब-जब अवसर मिलता तब-तब उसका पक्षपात किये बिना नहीं रहते थे । सामाचारी स्वरूप व्यवहार धर्म पर ही निश्चय धर्म टिक सकता है । यह बात वे बार-बार दोहराते, इतना ही नहीं, प्लास्टिक के घड़े या प्लास्टिक के पातरों आदि के द्वारा सामाचारी में प्रविष्ट विकृति के प्रति कभी-कभी जोरदार कटाक्ष करते हुए सुना है। मुझे अच्छी तरह ध्यान है कि एक बार तो दोनों हाथों में दो घड़े लेकर पानी लाने की विकृत प्रथा को आक्रमक रूप में निकृष्ट बताई थी । इतना ही नहीं; अनेक व्यक्तियों को ऐसा नहीं करने की प्रतिज्ञा भी दी थी। पंचाचारमय साधु-सामाचारी को सुरक्षित रखकर ही अन्य प्रवृत्तियों को महत्त्व देने के प्रति पूज्यश्री बार बार प्रेरित करते थे।
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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