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________________ बीस वर्ष पूर्व यहां चातुर्मास में २४० साध्वीजी थी । किसी को कुछ कहना न पड़े। वस्त्रों आदि का ढ़ेर स्वयमेव लगता जाये । आधोई संघ जो मुख्य चातुर्मास कराने वाला था, उसे कुछ भी लाभ नहीं मिला । * आप असत्य नहीं बोलोगे तो आपके वचनों में वचन-सिद्धि लब्धि प्रकट होगी । आप किसी को पीड़ा हो वैसा व्यवहार मन, वचन, काया से नहीं करो तो उपशम की लब्धि प्रकट होगी । आप संयम का उत्तम प्रकार से पालन करो तो अनेक अद्भुत लब्धियां उत्पन्न होंगी, परन्तु सुनो । ये लब्धियां आपकी हैं यह मत मानना । यह भगवान का प्रभाव है, यह मानना । लोग कैसी हवा फैलाते हैं ? मुझे अवधिज्ञान हुआ है । ऐसी बात कर्णाटक, आन्ध्र, तामिलनाडु आदि राज्यों में बहुत ही फैल गई। कितने ही फोन आदि आये । मैं कहता हूं, ऐसा कुछ हुआ नहीं है। पू. हेमचन्द्रसागरसूरिजी : हुआ हो तो क्या पता ? पूज्यश्री : हमें अवधिज्ञान हो या न हो, लोगों को पहले ज्ञान हो जाता है ।। एक उदाहरण बताता हूं । राजनादगांव में चतुर्थ व्रत ग्रहण किया, अतः लोगों ने अफवाह फैलाई - ये अक्षयराजजी तो दीक्षा लेने वाले हैं । उस समय दीक्षा लेने की बात मेरे मन में भी नहीं थी । दीक्षा की कोई बात ही नहीं थी । संयोग भी नहीं था, परन्तु दो वर्षों में ही दीक्षा ग्रहण करने के भाव जगे । उस समय कहता - 'आपकी बात सच्ची सिद्ध हो ।' यहां भी ऐसा ही होगा न ? अभी नहीं तो अगले भव में । कभी तो केवल ज्ञान होगा न ? हमें नहीं होगा तो किसे होगा ? अवधि ज्ञान नहीं, अनुभव ज्ञान हो ऐसी तमन्ना है; जिसे हरिभद्रसूरिजी ने संस्पर्श ज्ञान कहा है । अवधि ज्ञान की क्या बात करते हैं । केवल ज्ञानी के ग्रन्थ कण्ठस्थ हों तो अपने पास केवल ज्ञान है । आप अवधि ज्ञान की कहां कहते हैं ? * सकल कुशल वल्ली बोलें, तब जगचिन्तामणि० चैत्यवन्दन (कहे कलापूर्णसूरि - ३ 6 6 6 6 6 6 0 0 0 0 0 0 0 ५३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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