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________________ संपादन करनेवाले पू. पंन्यासजी श्री मुक्तिचन्द्रविजयजी गणिवर एवं पू. पंन्यासजी श्री मुनिचन्द्रविजयजी गणिवर का हम बहुत-बहुत आभार मानते हैं । १ से ३ भाग तक हिन्दी-अनुवाद करनेवाले श्रीयुत नैनमलजी सुराणा और चौथे भाग का हिन्दी अनुवाद करनेवाले पू. मुनिश्री मुक्तिश्रमणविजयजी म. के हम बहुत-बहुत आभारी हैं । दिवंगत पू. मुनिवर्यश्री मुक्तानंदविजयजी का भी इसमें अपूर्व सहयोग रहा है, जिसे याद करते हम गद्गद् बन रहे हैं । इसके प्रूफ-रीडिंग में २६९ वर्धमान तप की ओली के तपस्वी पू.सा. हंसकीर्तिश्रीजी के शिष्या पू.सा. हंसबोधिश्रीजी का तथा हमारे मनफरा गांव के ही रत्न पू.सा. सुवर्णरेखाश्रीजी के शिष्या पू.सा. सम्यग्दर्शनाश्रीजी के शिष्या पू.सा. स्मितदर्शनाश्रीजी का सहयोग मिला है। हम उनके चरणों में वंदन करते है। आज तक मनफरा में से ऐसे अनेक व्यक्ति दीक्षित बने हैं, जिनके पुण्य से ही मानो भूकंप के बाद हमारा पूरा गांव शान्तिनिकेतन के रूप में अद्वितीय रूप से बना है। एक ही संकुल में एक समान ६०० जैन बंगले हो - ऐसा शायद पूरे विश्व में यही एक उदाहरण होगा । लोकार्पण विधि के बाद उसी वर्ष वागड समुदाय नायक पूज्य आचार्यश्री का चातुर्मास होना भी सौभाग्य की निशानी है। हिन्दी प्रकाशन में आर्थिक सहयोग देनेवाले फलोदी चातुर्माससमिति एवं फलोदी निवासी (अभी चेन्नइ) कवरलाल चेरीटेबल ट्रस्ट व चेन्नइ के अन्य दाताओं को विशेषतः अभिनंदन देते हैं । श्रीयुत धनजीभाइ गेलाभाइ गाला परिवार (लाकडीया) द्वारा निर्मित गुरु-मंदिर की प्रतिष्ठा के पावन प्रसंग के उपलक्ष में प्रकाशित होते इन ग्रंथरत्नों को पाठकों के कर-कमल में रखते हम अत्यंत हर्ष का अनुभव करते हैं । अत्यंत सावधानीपूर्वक चारों भागों को हिन्दी-गुजराती में मुद्रित कर देनेवाले तेजस प्रिन्टर्स वाले तेजस हसमुखभाइ शाह (अमदावाद) को भी कैसे भूल सकते हैं ? प्रकाशक
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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